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अध्यात्म के प्रयोक्ता रूप में अर्हद् वन्दना का संगान होता है। डॉ. सच्चिदानन्द सहाय जो कुछ दिन गुरुदेव की सन्निधि में रहे, वे अर्हद् वन्दना से तो प्रभावित हुए ही साथ ही गुरुदेव की प्रशिक्षण-विधि से भी बहुत प्रभावित हुए। वे कहते हैं- 'अर्हन् वन्दना के २४ सूक्त प्राकृत भाषा के सामवेद के रूप में प्रतिष्ठित हो गए हैं।'
प्रार्थना शुरू करने के प्रारम्भिक वर्षों में भाई-बहिनों की ओर से परिषद् में कोलाहल बहुत होता था। पूज्य गुरुदेव ने बार-बार लोगों का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया इससे लोगों में प्रार्थना के प्रति एकाग्रता एवं एकलयता बढ़ी। सरदारशहर का प्रसंग है। प्रार्थना प्रारम्भ होने पर भी बहिनों की ओर से कोलाहल की ध्वनि सुनाई दे रही थी। पूज्य गुरुदेव ने प्रार्थना को बीच में ही स्थगित करते हुए कहा- "कोलाहल और प्रार्थनाये दोनों एक साथ नहीं चल सकते। मैं जनता में प्रार्थना इसलिए करता हूं कि जनता भी इसका स्वाद चखे। यदि आप लोगों का इसमें रस नहीं है तो फिर इसके लिए एकांत स्थान खोजना होगा।.....मैं आशा करता हूं कि आप सब लोग प्रार्थना में सम्मिलित होना पसंद करेंगे।" गुरुदेव के इस आह्वान से सभा में निस्तब्धता छा गयी। लोगों को एक शाश्वत बोधपाठ मिल गया।
अर्हद् वन्दना के प्रति जन-आस्था उत्पन्न करने हेतु अनेक बार गुरुदेव फरमाते थे- "अर्हद् वन्दना केवल अनुष्ठान नहीं है, लक्ष्य के प्रति जागृत होने का संकल्प है। यह आध्यात्मिक संपोषण देने वाली प्रक्रिया है। जिस प्रकार शरीर की पुष्टि के लिये नित्य भोजन की आवश्यकता रहती है, उसी प्रकार आत्मा को आध्यात्मिक खुराक की अपेक्षा रहती है, वह अर्हद् वंदना से उपलब्ध होती है। अध्यात्म के अभाव में जीवन सुव्यवस्थित, शांत और समाधिस्थ नहीं रहता। एकाग्रता, एकलयता और तन्मयता के साथ की जाने वाली इस अर्हत्-वंदना में कहीं भी साम्प्रदायिकता नहीं है। यह मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ाने वाली और मानसिक शांति वृद्धिंगत करने वाली है।" निकाय-व्यवस्था
तेरापंथ धर्म-संघ एक नेतृत्व द्वारा शासित शासन है। एक आचार, एक आचार्य और एक विचार इसकी मौलिक विशेषताएं हैं। संघ-विस्तार