________________
११
के संदर्भ में समाजधर्म, राजधर्म, नीतिधर्म, अर्थधर्म आदि सब मानवधमों की चर्चा है। जैन धर्म के आचार्य होते हुए भी आचार्य तुलसी की जितनी राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं वैश्विक सूझबूझ थी, अन्यत्र दुर्लभ है । राजनीति में जब अणुबम की विशद चर्चा होने लगी और सभी देश अणुबम बनाने की होड़ करने लगे, तब आचार्य तुलसी ने संदेश दिया, 'अणुबम नहीं किन्तु अणुव्रत आवश्यक है।' इसी तरह जब समूची दुनिया' अर्थ के पीछे दौड़ रही थी, तब उन्होंने 'महावीर का अर्थशास्त्र' प्रस्तुत कर दुनिया को चौंका दिया ।
पूज्य आचार्य तुलसी की साधना और उससे जुड़ी अलौकिक घटनाओं को एक समग्र पुस्तक में समेटकर समणी कुसुमप्रज्ञा ने अप्रतिम कार्य किया है। आम पाठक के लिए यह पुस्तक पठनीय है, वहीं वाचकों एवं शोध विद्यार्थियों के लिए इसकी सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, इसमें संदेह नहीं है। इस पुस्तक में आचार्य तुलसी के साधनामय जीवन की झांकी तो प्रस्तुत हुई ही है, साथ ही उनके विराट् व्यक्तित्व के विविध आयामों की झलक भी मिलती है। समणीजी का यह लेखन उद्देश्यपरक है । पुस्तक रोचक एवं पठनीय है। इसके विचार सीमा को लांघकर असीम की ओर गति करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । यह पुस्तक हृदयग्राही एवं प्रेरक है क्योंकि यह सहज एवं सरल प्रस्तुति है, जो किसी भी हृदय को झकझोरने एवं आनन्दविभोर करने में सक्षम है । पुनः समणीजी के अथक श्रम हेतु उन्हें बधाई ।
- राजेन्द्र अवस्थी सम्पादक : कादम्बिनी मासिक १८- २०, कस्तूरबा गांधी मार्ग
नई दिल्ली