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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ।
लेखिका ने प्रस्तुत पुस्तक में व्यक्तिगत साधना के प्रयोग' खण्ड में आचार्य तुलसी की साधना के विभिन्न आयामों को विवेचित किया है, जिनमें-आहार संयम के प्रयोग, आसन-प्राणायाम, कायोत्सर्ग-साधना, जपसाधना, मौन-साधना, स्वाध्याय, खड़े-खड़े स्वाध्याय, ध्यान-साधना, अनुप्रेक्षा का प्रयोग, एकाग्रता एवं स्मृति का प्रयोग, उदारता एवं निस्पृहता का प्रयोग, कषायमुक्ति की साधना, आत्मचिन्तन एवं आत्मालोचन, भावक्रिया, अप्रमत्तता आदि हैं।
आचार्य तुलसी के प्रायोगिक जीवन से मैं अत्यधिक प्रभावित रहा हूं। उन्होंने जो भी कहा, उसका पहले स्वयं प्रयोग किया। साधना का प्रारंभ प्रयोग से होता है। नित-नये प्रयोग कर उन्होंने नये-नये उन्मेषों का उद्घाटन किया। आचार्य तुलसी सफल प्रयोक्ता थे, इसलिए रूढ़ता उन्हें, किसी भी क्षेत्र में प्रिय नहीं थी। उन्होंने धर्म के क्षेत्र में भी अनेक प्रयोग किये। उनका अभिमत था कि धर्म में यदि प्रयोग नहीं जुड़ेंगे तो वह निष्प्राण और रूढ़ हो जाएगा। धर्म को प्रायोगिक बनाने के लिए आचार्य तुलसी ने आगम-सम्पादन, साहित्य-सृजन, नैतिक उन्नयन एवं साधना के गहन प्रयोग जैसे कितने ही प्रयोग समाज के सामने प्रस्तुत किये। उनके हर प्रयोग से समाज एवं देश को नई दिशा और नया प्रकाश मिलता रहा है। मैं स्पष्ट तौर से कहूंगा कि गांधी के बाद आचार्य तुलसी ही ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन से समूचे देश और दुनिया को प्रभावित किया है। जब-जब राष्ट्र के सम्मुख साम्प्रदायिकता, प्रांतीयता, जातिवाद, भाषाई विवाद, लोकतांत्रिक मूल्यों का अवमूल्यन, राजनैतिक गिरावट,
अशिक्षा, रूढ़िवादिता जैसी स्थितियां उभरीं, तब-तब आचार्य तुलसी ने • अपनी ऊर्जा एवं साधना के बल पर ऐसे समाधान प्रस्तुत किये, जिनसे न केवल समस्याओं के समाधान मिले, बल्कि समूचे राष्ट्र ने राहत की सांस ली। पंजाब समस्या, दक्षिण में भाषाई विवाद, संसदीय गतिरोध, चुनावशुद्धि अभियान ऐसी अनेक प्रमुख स्थितियां हैं, जो अपने समय में राष्ट्र के लिए कड़ी चुनौती के रूप में खड़ी हुई थीं। आचार्य तुलसी ने इनके समाधान-सूत्र प्रस्तुत कर अपनी साधना, सेवा और आध्यात्मिकता का परिचय दिया। साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी' पुस्तक में साधना