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________________ माना। उनकी साधना व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अध्यात्म और साधना को सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित करने का महनीय कार्य किया। ___मैंने आचार्य तुलसी को बहुत निकटता से देखा, उनसे कई बार चर्चाएं की, उनके व्यस्त एवं क्रियाशील जीवन को देखने और परखने का मुझे अनेक बार अवसर मिला। जन-कल्याण एवं जन-जागरण को वे अपनी साधना का ही एक अंग मानते थे। इसीलिए उनकी साधना गिरिकंदराओं में कैद न होकर मानव-जाति के कल्याण एवं योगक्षेम के साथ जुड़ी हुई थी। उनकी साधना के स्वरों में कृत्रिमता नहीं, अपितु हृदय की वेदना एवं अनुभूति बोलती थी अत: सीधी हृदय पर चोट करती थी। उन्होंने कहा- 'साधु जीवन का स्वीकार ही सब कुछ नहीं है।' यही कारण है कि उन्होंने आध्यात्मिक विकास के नए-नए प्रयोग किये। अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवनविज्ञान जैसे उपक्रमों के साथ-साथ अनेक संस्थाएं एवं रचनात्मक उपक्रम प्रारंभ किये, जिनमें जैन विश्व भारती, अणुव्रत विश्व भारती, अणुव्रत महासमिति, आदर्श साहित्य संघ, जय तुलसी फाउण्डेशन आदि सार्वजनिक संस्थान हैं। आचार्यश्री तुलसी की साधना का ही प्रतिफल है कि न केवल शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, साधना एवं योग के क्षेत्र में बल्कि राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक नये-नये कीर्तिमान स्थापित हुए। समण श्रेणी का प्रादुर्भाव भी उनकी गहन साधना की ही निष्पत्ति है। 'साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी' आचार्यजी की साधना और क्षमताओं का जीवंत इतिहास है। इस इतिहास को एकसूत्रता में पिरोना एवं इसकी विशद विवेचना करना बहुत दुस्साहस है। इस दुष्कर कार्य को समणी कुसुमप्रज्ञा ने जिस मनोयोग के साथ किया है, इससे उनकी लेखकीय प्रतिभा एवं क्षमता न केवल उजागर हुई है, बल्कि प्रतिष्ठित भी हुई है। मैं तो यही कहूंगा कि आचार्य तुलसी के दिवंगत होने के बाद उनकी स्मृति को स्थायित्व देने की दृष्टि से इससे अच्छी कोई श्रद्धाञ्जलि नहीं होगी। मैं समणी कुसुमप्रज्ञा को कोटिशः धन्यवाद देना चाहूंगा और अपेक्षा करूंगा कि उनका आगामी लेखन भी इसी भांति लोकोपयोगी एवं शाश्वत होगा।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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