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अध्यात्म के प्रयोक्ता
पढ़ सके तो उसे सहज ही ज्ञात हो जाएगा कि इसके लिए मेरे मन में कितनी गहरी तड़प है।"
साधना परक प्रयोग का वातावरण बनाने के लिए पूज्य गुरुदेव समय-समय पर गोष्ठियों के माध्यम से अनेक प्रयोगों की प्रेरणा देते रहते थे। संघीय दृष्टि से उनके द्वारा किए गए प्रयोगों की एक लम्बी श्रृंखला है। 'पंचसूत्रम्' के तीसरे चर्यासूत्र में संघ के समक्ष प्रेरणा-पाथेय प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा
अनेके संति पंथानः, साधनाक्षेत्रचारिणाम्। प्रकर्षं चरणान् नेतुमवलम्ब्यो यथारुचि॥ तेनैको मुख्यरूपेण, समालम्ब्यो मुमुक्षुणा।
केवलं लक्ष्यसंसिद्ध्यै, न प्रभावयितुं परान्॥
पूज्य गुरुदेव सोचते थे कि यदि साधक साधना की कोई निश्चित दिशा स्वीकार कर ले तो उसके भटकने की संभावना कम हो जाती है। साधना के क्षेत्र में विकास की तड़प गुरुदेव की इस अभिव्यक्ति में देखी जा सकती है- 'मैं चाहता हूं संघ में साधना के नए-नए आयाम खुलें। यदि इस दृष्टि से कुछ विशिष्ट साधक सामने आते हैं तो शिक्षाकेंन्द्र की भांति साधनाकेन्द्र की कल्पना भी मेरे दिमाग में है। मैं उनको पूरी सुविधा दे सकता हूं।'
_ वि.सं. २०२० (सन् १९६३) पट्टारोहण दिवस पर पूज्य गुरुदेव ने योगसाधना पर विशेष बल दिया। प्रेरणा के साथ ही आश्विन कृष्णा एकम से सामूहिक योग साधना का क्रम प्रारम्भ किया गया। एक साल तक स्वाध्याय, ध्यान एवं जप के विविध प्रयोग व्यवस्थित रूप से चले। एक साल पश्चात् वि.सं. २०२१ आश्विन शुक्ला एकम को गुरुदेव ने एक गोष्ठी बुलाई, जिसमें साधु-साध्वियों ने साधना से सम्बंधित रोचक एवं प्रेरक संस्मरण सुनाए। गोष्ठी के अंत में प्रेरणा-पाथेय देते हुए गुरुदेव ने कहा- 'साधना हमारा प्राण है। प्राण से अधिक हमारे लिए क्या हो सकता है? वही हमारा सर्वस्व है। उसका संरक्षण और विकास हमारा प्रमुख कर्तव्य है। इस कर्त्तव्य का पालन तभी संभव है, जब हमारे रहन-सहन व जीवन के हर व्यवहार में साधना का प्रतिबिम्ब रहे। मैं उस साधना को