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________________ १२९ अध्यात्म के प्रयोक्ता का क्रम निश्चित रखा गया। जिस दिन एकासन न हो उस दिन विगयवर्जन एवं भोजन में एक बार में ९ से अधिक द्रव्य न खाने का प्रावधान रखा गया। भावितात्मा - साधना में संलग्न साधक के लिए कुछ कसौटियां निर्धारित की गयीं । उन कसौटियों पर खरा उतरने वाला साधक ही इस साधना के क्रम में प्रवेश पा सकता था। कसौटी के मुख्य बिन्दु ये थे जो सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सहवास में पूर्ण आस्थावान् हो । * जो मर्यादा और व्यवस्था के प्रति पूर्ण जागरूक हो । . स्वाध्याय, भावना और ध्यान-योग की विशेष साधना जिसका जीवनव्रत हो । विवेक और व्युत्सर्ग से बार-बार अपने को भावित करता हो । जो इंद्रिय-प्रतिसंलीनता और कषाय- प्रतिसंलीनता की साधना में दत्तचित्त हो । कसौटी के साथ-साथ भावितात्मा के कुछ कर्त्तव्य भी निर्धारित किए गए सामुदायिक जीवन में सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण । स्वाध्याय और ध्यान के प्रति आकर्षण पैदा करना । स्थिरीकरण - साधु-साध्वियों को अध्यात्म-साधना में स्थिर करना । हर परिस्थिति में सम रहने की विशिष्ट साधना करना । जैसे शिक्षा के लिए कालबद्ध निश्चित क्रम निर्धारित रहता है उसके बाद बी.ए., एम.ए. आदि की उपाधियां मिलती हैं, वैसे ही पूज्य गुरुदेव ने भावितात्मा के लिए निश्चित पाठ्यक्रम निर्धारित किया। यह साधना-क्रम साधना के सर्वांगीण विकास की ओर उन्मुख करने वाला था । साधना - क्रम तीन वर्ष का निर्धारित किया गया किन्तु पांच साल की साधना पूर्ण करने पर गुरुदेव मर्यादा महोत्सव पर 'भावियप्पा एवं सेवट्ठी' की उपाधि देंगे, ऐसा निश्चित किया गया। ये सारी उपाधियां आगमों में वर्णित हैं । उत्तराध्ययन आदि अनेक आगमों में 'भावियप्पा' शब्द का प्रयोग मिलता है पर गुरुदेव ने इसका साधना-क्रम भी प्रस्तुत कर दिया तथा
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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