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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
१२८ विस्मृतप्रायः हो गया था। अपवाद रूप में दो-चार साधु ध्यान का विशेष अभ्यास करते थे किन्तु अब बीसों-तीसों साधु-साध्वियां मेरे पास आते हैं और ध्यान के सम्बन्ध में जिज्ञासाएं करते हैं। मैं उन्हें उसका क्रम और सामग्री बतलाता हूं। इस प्रकार ध्यान-साधना का क्रम बढ़ रहा है। उसके परिणाम भी हमारे सामने हैं। कुल मिलाकर प्रणिधान-कक्ष ने अच्छी उपलब्धि प्रस्तुत की है। संघ में समय-समय पर साधना के विविध प्रयोग चलते रहें तो अध्यात्म के क्षेत्र में नए विकास की संभावना की जा सकती है।' भावितात्मा साधना क्रम
भावितात्मा अर्थात् आत्मा को शुभ भावों से भावित करने वाला। 'पंचसूत्रम्' में भावितात्मा को परिभाषित करते हुए पूज्य गुरुदेव कहते
एकत्वमाप्तोऽपि वसन् समूहे, परानपेक्षेत गुणानुकारे। परानुपेक्षेत गुणोपरोधे, स भावितात्मा चिरमेति शांतिम्॥
अर्थात् समूहवासी रहता हुआ भी भीतर में अकेला रहता हुआ साधक जहां गुणों के अनुकरण का प्रश्न हो, वहां दूसरों की अपेक्षा रखता है और जहां गुणविघात का प्रश्न हो, वहां दूसरों की उपेक्षा करता है, वह भावितात्मा साधक चिरशांति को प्राप्त करता है।
प्रणिधान-कक्ष में जो प्रयोग सिखाए गए, उनका सलक्ष्य प्रयोग करने हेतु विक्रम संवत् २०२१ में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर गुरुदेव ने 'भावियप्पा' एवं 'सेवट्ठी' (निज्जरट्ठी) का नया अभिक्रम शुरू किया। इस साधना-क्रम में निर्जरा की भावना को विकसित करने का विशेष वातावरण बनाया गया।
भावितात्मा साधना का क्रम शुरू करते हुए गुरुदेव ने फरमाया'हमारी मर्यादाओं का आधार साधना है। उसके बिना साधना टिक नहीं सकती। हमारा सारा जीवन साधनामय है और होना चाहिए। मैं चाहता हूं कि कुछ साधु-साध्वियां साधना में विशेष गति करें। उन्हें साधनाविषयक सुविधा दी जा सकती है।'
भावितात्मा साधना के क्रम में संलग्न व्यक्ति के लिए भावक्रिया एवं अनावेग की साधना आवश्यक रखी गयी।सुविधानुसार प्रतिदिन एकासन