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________________ १२७ अध्यात्म के प्रयोक्ता दी। कुशल साधना के प्रथम सूत्र निर्जरार्थिता (निजरट्ठिए) को सामूहिक प्रयोग का विषय बनाया गया इसलिए पूरे उज्जैन चातुर्मास में कार्य का विभाजन नहीं किया गया। निर्जरा के लिए ही साधु-साध्वियों ने सारे सामुदायिक कार्य सम्पन्न किए। उस प्रयोग के बारे में पूज्य गुरुदेव अपना मंतव्य प्रकट करते हुए कहते हैं- "इतने लम्बे समय तक आचार्यों की सेवा सम्बन्धी और संघीय व्यवस्था सम्बन्धी काम-काज की अनुक्रम से 'बारी' का न होना बहुत बड़ी बात थी। इससे भी बड़ी बात थी दीक्षा पर्याय में बड़े साधु-साध्वियों द्वारा छोटे साधु-साध्वियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों का सम्पादन । यह प्रयोग अनेक दृष्टियों से उत्साहवर्धक और उपयोगी रहा। कुशल-साधना से धर्मसंघ में साधना के प्रति नए उत्साह का वातावरण बना और आगमों में विकीर्ण साधना-पद्धति का प्रायोगिक रूप सामने उभर कर आया। प्रणिधान-कक्ष साधु-साध्वियों की साधना में गति देने हेतु गुरुदेव ने प्रणिधानकक्ष का प्रारम्भ किया। प्रणिधान-कक्ष के अन्तर्गत दस दिवसीय शिविर होता, जिसमें साधु-साध्वियां ही भाग लेते थे। प्रणिधान-कक्ष के प्रारम्भ में धर्मसंघ को प्रेरणा देते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा- 'मेरे मन में सदा से एक भावना रही है कि हमारे धर्म-संघ में आंतरिक साधना का विकास हो। वैसे तो साधु जीवन का अर्थ ही साधना है पर उस जीवन में नए प्रयोग न हों तो जीवन रूढ़ बन जाता है इसलिए साधक को प्रायोगिक जीवन जीना चाहिए, जिससे उसमें आत्म-संयम एवं आत्मानुशासन का उत्तरोत्तर विकास होता रहे। . प्रणिधान-कक्ष के उपक्रमों में ध्यान एवं आसन आदि के विशेष प्रयोगों के साथ विचार-गोष्ठियां भी आयोजित की गयीं। विचार-गोष्ठी के माध्यम से भाव-परिवर्तन एवं मस्तिष्क-प्रशिक्षण के विशेष प्रयोग कराए गए। प्रणिधान-कक्ष की साधना का क्रम तीन साल तक चला। इस साधना की परिसम्पन्नता के अवसर पर पूज्य गुरुदेव ने अपनी अन्तर्भावना प्रकट करते हुए कहा- 'प्रणिधान-कक्ष ने हमारी अन्त:साधना का द्वार प्रशस्त किया है। हमारे लिए विकास का स्रोत प्रारम्भ हुआ है। सदियों से ध्यान
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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