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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १२६ * दूसरे साधुओं को अधिक से अधिक अपनी सेवाएं देना। कर्तव्य निष्ठ होना। २. फलाशा-संयम (निरासय) प्रवृत्ति के पहले या पीछे फल की कामना न करना। * विनय व आज्ञा-पालन निस्पृह व जागरूक भाव से करना। ३. खाद्य-संयम (मियासण) * कम खाना-मात्रा में परिमाण की मर्यादा रखना। * कम खाना-संख्या में-द्रव्यों की मर्यादा रखना। कम खाना-विगय या सरस वस्तु की दृष्टि से। ४. उपकरण-संयम (अप्पोवहिय) वस्त्र आदि साधन कम से कम रखना। सादा रखना-घटिया-बढ़िया की चर्चा न करना। ५. वाणी-संयम (अप्पभासी) कम बोलना-बिना प्रयोजन न बोलना। * विवाद और चुगली से बचना। ६. इन्द्रिय-मानस-संयम (जिइंदिय) * इनको स्वाध्याय-ध्यान में लगाये रखना। इनको अन्तर्मुखी बनाना। ७. अभय (न भावियप्पा) * आवश्यक सत्य को विवेकपूर्वक प्रकट करने में न सकुचाना। ८. पवित्रता (निस्संग) . * विकारों से बचना। ९. कष्टसहिष्णुता (परीसहरिऊदंत) . सुविधा और असुविधा में समचित्त, समवृत्ति और संतुष्ट रहना। * परीषहों को परम-धर्म समझकर सहना। १०. आनन्द (आणंदघण) * आत्मरमण-यह साधना का नवनीत है। आनन्द साधना की कसौटी है। वस्तु-निरपेक्ष आनन्द रहने लगे तब समझना चाहिए कि साधना फल ला रही है, साधना का विकास हो रहा है। साधना के इन सूत्रों ने सभी साधु-साध्वियों में नई स्फुरणा भर
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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