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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १२४ सैकड़ों संस्मरण युगों-युगों तक मानव-जाति की प्रमत्त चेतना को झकझोर कर जागृति का नया संदेश देते रहेंगे। संघीय साधना के प्रयोग साधना की परिपक्वता के लिए निरन्तर प्रयोग आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रयोग से एक नया अनुभव मिलता है तथा अग्रिम प्रयोग की भूमिका सुदृढ़ हो जाती है। पूज्य गुरुदेव ने संघीय एवं वैयक्तिक स्तर पर साधना के विकास हेतु अनेक नए चिन्तन एवं नए प्रयोग किए। उन प्रयोगों की ही फलश्रुति है कि उनका धर्मसंघ जागृत एवं जीवन्त धर्मसंघ है। प्रयोग होने पर उसका परिणाम न आए तो उस प्रयोग के सामने प्रश्नचिह्न लग जाता है। हर प्रयोग का व्यवहार में प्रतिबिम्ब दिखाई देना चाहिए। बदलाव या रूपांतरण घटित होना चाहिए। पूज्य गुरुदेव किसी भी प्रयोग के प्रारम्भ में असफलता या निराशा की बात नहीं सोचते थे। यही कारण था कि उनके द्वारा किया गया हर प्रयोग सफल एवं फलदायी हुआ। उनके द्वारा किए गए प्रयोगों की व्यवस्थित एवं ऐतिहासिक अभिव्यक्ति देना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। फिर भी प्राप्त सामग्री के आधार पर उनके द्वारा प्रवर्तित एवं प्रयुक्त प्रयोगों की संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत की जा रही है। कुशल साधना साधना के विविध प्रयोगों की दृष्टि से उज्जैन चातुर्मास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा। वहां आगम-संपादन का महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ हुआ। आगम-संपादन से अध्यात्म की नयी दृष्टियां विकसित हुईं। आगमों में विकीर्ण रूप से साधना के अनेक सूत्रों का उल्लेख है पर वे केवल सिद्धांत रूप में उल्लिखित हैं। किसी भी सिद्धांत को प्रायोगिक रूप देना एक नए सृजन को प्रस्तुत करना है। जिस सिद्धांत के साथ प्रयोग नहीं जुड़ते वह कालांतर में मृतप्रायः हो जाता है। इसी प्रकार प्रयोग का कोई सैद्धांतिक धरातल नहीं होता तो वह असफल हो जाता है। पूज्य गुरुदेव ने इस सत्य को समझा। वे कहते थे कि सिद्धांत कितना ही अच्छा क्यों न हो, प्रयोग के बिना उसकी सार्थकता नहीं होती। इसी प्रकार प्रयोग की बात लुभावनी लग सकती है पर सिद्धांत के अभाव में प्रयोग को आधार नहीं मिलता।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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