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________________ १२३ अध्यात्म के प्रयोक्ता निकलवाने पड़े। उसके बाद दांतों की सफाई का लक्ष्य बना। दांतों में अन्न के कण फंसे रहने से बासी रहने की संभावना और पायरिया का भय रहता है। पहले मैं सोचता था कि मसूढ़े बहुत कोमल होते हैं । उनको नहीं, दांतों को अंगुली से घिसना चाहिए। बाद में जानकारी मिली कि दांतों की अपेक्षा मसूढों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। मालिश मसूढ़ों की होनी चाहिए। तब से इस ओर सावधानी बढ़ी।कुछ दांत खो दिए किन्तु शेष को बचाकर रख सका हूं। इस जागरूकता से आज भी मेरे दांत अच्छी स्थिति में है।' दूसरों को प्रमाद की अनुभूति कराना और भविष्य में अप्रमत्त रहने का बोध देना भी एक बड़ी कला है। पूज्य गुरुदेव इस कला में सिद्धहस्त थे। उनकी तीक्ष्ण दृष्टि दूर से ही प्रमाद को पकड़ लेती थी। यह घटना प्रसंग मनोवैज्ञानिक शैली में प्रमाद पर प्रहार करने का अवबोध देने वाला है। पूज्य गुरुदेव साधु-साध्वियों के समक्ष अपनी नयी कृति 'श्रावक संबोध' का वाचन कर रहे थे। सवेरे का समय था। उस समय कुछ संतों को झपकी आ रही थी। गुरुदेव के समक्ष कोई प्रमाद करे, यह कैसे क्षम्य हो सकता था? तत्काल गुरुदेव ने बालमुनि को हाथ के संकेत से जागृत कर दिया। मुनिश्री हीरालालजी, जो पचास वर्षों से गुरुदेव की उदक-सेवा में संलग्न हैं, आगमज्ञाता हैं और बहुत निष्ठा से अपना दायित्व निभाते हैं। जब उन्हें झपकी लेते हुए देखा तो गुरुदेव ने मनोवैज्ञानिक शैली में उन्हें सजग करते हुए कहा- 'हीरालालजी! नींद ही लेते रहोगे या पानी भी पिलाओगे?' गुरुदेव की इस मीठी चुटकी से सभी के चेहरे खिल उठे। सबकी नींद कपूर की भांति आकाश में विलीन हो गयी। ' प्रमत्त व्यक्ति संभावनाओं के द्वार पर दस्तक नहीं दे सकता। पूज्य गुरुदेव ने अप्रमाद की अहर्निश साधना से अनेक उपलब्धियों को हासिल किया। उम्र के नवें दशक में भी वे किसी प्रमाद या मूर्छा से परास्त नहीं थे। उनका परिपार्श्व सदैव अभिनव चैतन्य के जागरण से आप्लावित रहता था। वे सतत इस चिंतन-प्रक्रिया से गुजरते रहते थे कि मैंने क्या किया, मेरे लिए क्या करणीय शेष है और ऐसा कौन सा कार्य है, जिसे मैं कर सकता हूं फिर भी नहीं करता। पूज्य गुरुदेव की अप्रमत्त साधना और उससे जुड़े
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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