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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी . १२२ न केवल अनुताप व्यक्त किया बल्कि प्रायश्चित्तस्वरूप स्वयं भरी सभा में थोड़ी देर खड़े रहे। इस घटना ने अनेक लोगों को समय के अंकन का जीवन्त प्रतिबोध दे दिया। जब कोई व्यक्ति भारतीय लोगों के समय की अनियमितता को 'इंडियन टाइम' कहकर व्यंग्य करता तो उनको बहुत पीड़ा होती थी, वे इसे बदलना चाहते थे। अप्रमत्त साधक हर कार्य को जागरूकता से निष्पादित करता है। पूज्य गुरुदेव न केवल अपनी हर क्रिया के प्रति जागरूक थे अपितु अपने अनुयायियों के हर क्रिया-कलापों का भी सूक्ष्म निरीक्षण करते रहते थे। गांव के एक स्कूल में पूज्य गुरुदेव का प्रवास था। कमरे में अंदर प्रकाश नहीं था अतः साधु गुरुदेव के बैठने के बेंच बाहर घसीटने लगे। पूज्य गुरुदेव ने जब बेंचों को घसीटते देखा तो प्रेरणा देते हुए कहा- 'बेंचों को घसीटना प्रमाद है। यदि इनके नीचे जीव आ जाएं तो उनकी हिंसा से कैसे बचा जाएगा? जीव न भी मरें तो भी अपना प्रमाद तो है ही। प्रमाद हिंसा और जागरूकता अहिंसा है। साधक को प्रतिपल जागरूक एवं सजग रहना चाहिए। दूसरी बात बेंच उपयोग करने के लिए है न कि खराब करने के लिए। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्रमाद से कोई वस्तु खराब न होने दें। प्रमाद होने पर उससे नया बोधपाठ लेने वाले संसार में विरले ही होते हैं। प्रायः देखा जाता है कि प्रमाद का अहसास हो जाने पर भी व्यक्ति मनोबल या विवेक की कमी से उससे निवृत्त नहीं हो पाता। अपने किसी भी प्रमाद से पूज्य गुरुदेव न केवल स्वयं भविष्य के लिए बोध पाठ लेते वरन् दूसरों को भी समय-समय पर सावधान करते रहते थे। इस सन्दर्भ में मेरा जीवनः मेरा दर्शन पुस्तक में व्यक्त एक अनुभव उन्हीं की भाषा में पठनीय है- 'बहुत बार जानकारी के अभाव में प्रमाद हो जाता है। वि.सं. २००० तक मैंने कभी अपने दांतों पर ध्यान नहीं दिया। दांतों की सफाई का न तो लक्ष्य था और न पद्धति थी। दंतमंजन लगाने का तो प्रश्न ही नहीं था, कुल्ला भी ढंग से नहीं किया जाता। गंगाशहर में एक बार दांतों में दर्द हुआ। डॉ. ने दांत देखकर कहा- 'दंतक्षय शुरू हो गया है। कुछ दांत जाने वाले हैं।' डॉ. के कथन पर विश्वास नहीं हुआ इसलिए पूरा ध्यान भी नहीं दिया। अपने प्रमाद का बोध तब हुआ, जब कुछ दांत निकल गए या
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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