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अध्यात्म के प्रयोक्ता
वार्तालाप के क्रम में बारह बज गए। आचार्य भिक्षु की भांति तत्त्वज्ञान या ज्ञानबोध देने में जागरण भी गुरुदेव के लिए आत्म- - संतुष्टि का कारण बनता था, इस बात को पद्यबद्ध करते हुए गुरुदेव ने फरमाया
व्रजवाणी की रात, चर्चा में बारह बजे । गेड़ी हर्षित गांत, राते जिनमंदिर रह्यो ।
'जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी' इस आगमिक सूक्त में उनका पूरा विश्वास था । यही कारण था कि उनके जीवन में प्रकाश और अन्तर्दीप्ति स्वतः प्रकट हो गयी।
महावीर ने 'काले कालं समायरे' जैसे समय-प्रबंधन के अनेक अनमोल सूत्र दिए हैं। यदि एक सूत्र को भी स्मृति में रखा जाए तो दिन में अनेक कार्यों को अच्छे ढंग से सम्पादित किया जा सकता है। पूज्य गुरुदेव कहते थे कि जो साधक समय को पहचानता है, हर कार्य समय पर ही करता है, वह साधना के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ता रहता है क्योंकि कल का अंत नहीं है अतः आज का ही प्रयोग करना चाहिए।
अप्रमत्त व्यक्ति ही समय का ठीक प्रबंधन कर सकता है क्योंकि वह जानता है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। समय की अनियमितता व्यक्ति की दिनचर्या को व्यवस्थित नहीं रहने देती । न उसके सोने का समय नियत होता है और न जगने का इसलिए करणीय कार्य के प्रति उसके मन में जागरूकता नहीं हो सकती। पूज्य गुरुदेव ने समय के मूल्य को आंका गया हुआ क्षण करोड़ों मोहरे देने पर भी नहीं आता इसलिए उन्होंने क्षण-क्षण का रस निचोड़कर उसका उपयोग किया। किसी भी कार्य में समय का अतिक्रमण उनको पसंद नहीं था। जब-जब निर्धारित कार्यक्रम में किसी के द्वारा समय का अतिक्रमण होता तो वे तत्काल अंगुलिनिर्देश कर देते। उनका अंगुलिनिर्देश दूसरों पर ही नहीं होता। यदि किसी आवश्यक कारण से उनके द्वारा निर्धारित समय का अतिक्रमण होता तो वे तत्काल समूह में उसका उल्लेख कर देते। योगक्षेम वर्ष में निर्धारित समय से लेट पहुंचने वालों को दण्डस्वरूप कुछ समय खड़े होने का नियम था । एक दिन किसी आवश्यक प्रयोजनवश गुरुदेव को प्रवचनपंडाल पहुंचने में दो मिनट की देरी हो गयी। गुरुदेव ने इस देरी से आने का