SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११९ अध्यात्म के प्रयोक्ता प्राकृतिक प्रकोप होने पर गुरुदेव ने समूचे परिपार्श्व को स्वाध्यायमय बना दिया। केरल के अलवै गांव में गुरुदेव का प्रवास था। रात को नौ बजे हवा बंद हो गई और वर्षा होने लगी। अचानक मच्छरों ने धावा बोल दिया। गुरुदेव ने मच्छरों पर रोष न करके अहिंसक प्रतिकार की बात सोची। संत भी मच्छरों के कारण नींद नहीं ले पा रहे थे। वे करवटें बदल रहे थे। गुरुदेव ने सभी संतों को आह्वान किया और कालूगणी के जीवन-प्रसंग सुनाने लगे। संस्मरणों की रोचकता में सभी संत मच्छरदेश के परीषह को भूल गए। रात्रि के दो बजे तक यह क्रम चलता रहा। ऐसे एक नहीं अनेक प्रसंग हैं, जो उनकी अप्रमत्तता और क्षण-क्षण जागरूक रहने की जीवन्त कहानी को प्रस्तुत करने वाले हैं। . दक्षिण यात्रा के दौरान पुंदमली गांव में वहां के फादर से चर्चा करते हुए रात्रि के बारह बज गए। संतों ने विश्राम हेतु निवेदन किया तथा अगले दिन लम्बे विहार की बात भी याद दिलाई पर गुरुदेव ने कहा'आचार्य भिक्षु ने तो धर्म-प्रतिबोध हेतु अनेक रातें जगाईं, क्या हम थोड़ी देर भी जागरण नहीं कर सकते?' दायित्व के प्रति उनकी यह तन्मयता और निष्ठा जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी हुई थी। ये घटना प्रसंग स्पष्ट करते हैं कि गुरुदेव स्वयं तथा समूचे संघ को अहालंद (हर क्षण अप्रमत्त) की साधना में संलग्न देखना चाहते थे। उनका मंतव्य था कि समय को सफल बनाना ही उसको वश में करना है। उसको व्यर्थ गंवाना परवशता है। पूज्य गुरुदेव अपनी शक्ति एवं समय का नियोजन सदैव सम्यक् कार्यों में करते थे। जहां उन्हें प्रतीत होता था कि यहां समय लगाना सार्थक नहीं होगा तो वे तत्काल उस प्रसंग से विरत हो जाते थे। एक क्षण भी समय को व्यर्थ गंवाना उनके स्वभाव के प्रतिकूल था। उनका मानना था कि प्रमाद की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता पर स्व-प्रबंधन और समय-प्रबंधन से यह संभावना न्यून से न्यूनतर होती जाती है। अपनी कालजयी रचना 'व्यवहार-बोध' में उन्होंने इसी सत्य का संगान किया है जीवन की बड़ी कला है समय-नियोजन, 'समयं गोयम! मा पमायए' परियोजन।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy