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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ११६ पूज्य गुरुदेव ने संपूर्ण संघ को भी इसका प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया। वि.सं. २०१८ का घटना प्रसंग है। द्विशताब्दी का ऐतिहासिक कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद गुरुदेव बाड़मेर पधारे । मध्याह्न दो बजे प्रतिदिन गुरुदेव के पास साधु-साध्वियों का वाचन चलता था। वैशाख का महीना था। चिलचिलाती धूप के कारण धरती तवे की भांति तप रही थी। धरती पर पैर टिक नहीं पा रहे थे अत: अनेक साध्वियां दौड़कर गुरुदेव के उपपात में पहुंच गयीं। गुरुदेव ने खिड़की से साध्वियों की तीव्र एवं अस्थिर गति को देख लिया। अध्ययन का क्रम प्रारम्भ हुआ। गुरुदेव ने प्रसंगवश साधुचर्या के बारे में प्रशिक्षण दिया और पूछा- 'क्या तुम लोगों की गति भावक्रिया से संवलित थी?' साध्धियों का मन अनुताप से भर उठा। उन्होंने निवेदन किया- 'हमारी गति साधु त्व के प्रतिकूल थी। पर...' गुरुदेव ने अमित वात्सल्य उंड़ेलते हुए कहा- 'मैं जानता हूं कि तुम लोगों के पैर जल रहे थे पर भावक्रिया को भूलकर दौड़ना साधु-जीवन की शोभा नहीं बढ़ाता। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हम साधु हैं। हमारी गति गृहस्थों से भिन्न होनी चाहिए। अण्णहा णं पासए परिहरेजा'- महावीर के इस सूक्त को सतत स्मृति में रखकर हर क्रिया करनी चाहिए। हमारा हर कार्य भावपूर्ण और कलापूर्ण हो, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। 'व्यवहार बोध' में पूज्य गुरुदेव ईर्यासमिति का सक्रिय प्रशिक्षण देते हुए संगान करते हैं धीमे-धीमे देख-देखकर, तन्मय होकर गमन करें। वार्तालाप हास्य का वर्जन, आवेगों का शमन करें। भावक्रिया का तीसरा अर्थ है- जानते हुए कार्य करना। जानते हुए कार्य करने वाले साधक के जीवन में पश्चात्ताप के अवसर कम आते हैं क्योंकि उसकी हर क्रिया ज्ञान से युक्त होने के कारण विवेक एवं संयम से संवलित रहती है। वह सदैव भावनिक्षेप में जीता है अत: वह क्रियामय बन जाता है। सन् १९८२ का घटनाप्रसंग है। ५ मई को डेगाना में पूज्य गुरुदेव ने उपवास किया। संतों ने अनुरोध किया कि आज उपवास होने पर भी आपने पूरे दिन कठोर श्रम किया है अतः रात्रि के समय आप विश्राम करें। इच्छा न होने पर भी गुरुदेव ने संतों का निवेदन स्वीकार कर लिया।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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