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________________ १११ अध्यात्म के प्रयोक्ता दिन अपने रात्रि-जागरण का अनुभव अभिव्यक्त करते हुए गुरुदेव ने कहा- 'रात को लगातार स्यात् पांच मिनिट भी मैंने नींद नहीं ली होगी। मन चिंतन, मनन और स्वाध्याय में लगा रहा। मैं व्यक्तिशः सोचता रहा कि किसी साधु या गृहस्थ के प्रति ऐसा व्यवहार तो नहीं हुआ जो उसे अप्रिय और कटु लगा हो। मेरी आत्मा अपने कोने-कोने में टटोलकर, उसका परिमार्जन कर रही थी। प्रायः सारी रात इसी तरह आत्मचिंतन, आत्मावलोकन, मनन व स्वाध्याय में बीती। दक्षिण एवं मारवाड़ की यात्रा के दौरान अनेक बार स्थान की असुविधा एवं प्राकृतिक प्रकोप के कारण गुरुदेव ने रात्रि के अधिकांश समय को धार्मिक चर्चा एवं स्वाध्याय में व्यतीत करते हुए अत्यन्त आत्मतोष का अनुभव किया। पूज्य गुरुदेव के आत्मचिंतन का क्रम रूढ़ एवं औपचारिक नहीं था। उनका हर चिंतन नवोन्मेष एवं हार्दिकता लिए हुए होता था। संवत्सरी के बाद दूसरे दिन जब वे सबसे क्षमायाचना करते थे तो पंडाल में बैठे हजारों व्यक्तियों का हृदय द्रवित एवं आंखें नम हो जाती थीं। उनकी आर्षवाणी अनेकों की उलझी ग्रंथियों को खोल देती थी। मन की गांठें स्वतः खुल जाती थीं। मनुष्य निग्रंथ- ग्रंथिरहित हो जाता था। पंडाल में बैठे हर व्यक्ति का हृदय मैत्री एवं क्षमा से आप्लावित हो उठता था। उनकी वाणी हर प्रकार के शल्य का विमोचन कर देती थी। मैत्री दिवस पर प्रकट किया हुआ उनका अनुभव आत्मचिंतन से उद्भूत होने वाली निर्मलता एवं पवित्रता का श्रेष्ठ उदाहरण कहा जा सकता है- 'आज मुझे अपना आत्मनिरीक्षण करके ऐसा लगता है कि मैं काफी हल्का हो गया हूं। अभी यदि कोई मेरे अंतर का फोटो ले तो उन्हें अवश्य राग-द्वेष रहित एवं कषायहीन बनने की सबल प्रेरणा मिलेगी।' गुरुदेव की उक्त अनुभवपूत वाणी हर साधक को सोचने के लिए मजबूर करती है कि यदि आत्मचिंतन केवल औपचारिक एवं दिखावा मात्र होगा तो वह हस्ती-स्नान की भांति लाभदायी नहीं हो सकता।आत्मचिंतन की निष्पत्ति है- व्यक्ति स्वयं को हल्का एवं कषायमुक्त अनुभव करे तथा सत्यं, शिवं, सुन्दरं की दिशा में प्रस्थान करे। आत्मनिरीक्षण और आत्मालोचन अध्यात्म के दो ऐसे नेत्र हैं, जो दूसरों को नहीं अपितु अपने आपको देखने की शक्ति प्रदान करते हैं।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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