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________________ १०३ अध्यात्म के प्रयोक्ता घटना प्रसंग से भी वे अपने शिष्यों को कषायमुक्त होने की प्रेरणा देते रहते थे। विहार के दौरान गुरुदेव एक गांव से गुजर रहे थे। मार्ग में एक-स्थान पर चने का ढेर पड़ा था। गुरुदेव की पैनी दृष्टि उस ढेर पर टिक गयी। तत्काल संतों को प्रतिबोध देते हुए उन्होंने कहा- 'यह धान्य इतना हल्का और चिकना होता है कि इससे भरे कोठे में यदि कोई अन्य वस्तु डाली जाए तो तत्काल वह नीचे चली जायेगी। कोई भी बाह्य वस्तु उसे प्रभावित कर अपना प्रभुत्व नहीं जमा पाती। कितना अच्छा हो मनुष्य की मानस-जमीन भी हल्की और स्निग्ध हो जाए, जिससे कषाय रूप विजातीय दुर्गुण उसे प्रभावित न कर सके।' प्रयोगों द्वारा कषायमुक्त होने की प्रेरणा उनकी इन काव्य-पंक्तियों में पठनीय है बनें कषायविजेता प्रतिदिन, कर-कर नये प्रयोग। कायोत्सर्ग ध्यान के द्वारा, रोकें चंचल योग। कषाय का सघन वलय तोड़ना साधक का मुख्य उद्देश्य होता है। पूज्य गुरुदेव की अकषाय साधना ने मूर्छा की ग्रंथि का भेदन कर सतत जागृति की दिशा में प्रयाण किया तथा जीवन को सहज आनन्द और आलोक से आपूरित किया। कषाय से आविष्ट चित्त वाले व्यक्ति अपने प्रतिकूल चलने वालों के प्रति ऐसी गांठ बांध लेते हैं, जो जीवन भर नहीं खुल पाती। क्षमायाचना करने पर भी दूसरों का असद्व्यवहार भूलना उनके लिए कठिन होता है। पर गुरुदेव के जीवन के ऐसे सैकड़ों प्रसंग हैं, जब विरोधी या प्रतिकूल वर्तन करने वाले के प्रति भी उनके मन में प्रमोद भाव दृष्टिगत हुआ तथा दूसरे के असद् व्यवहार में भी अच्छाई ही दिखलाई पड़ी। सुजानगढ़ के चांदमलजी सेठिया युवावस्था में धर्मविरोधी तो थे ही, साथ ही गुरुदेव के कार्यक्रमों की भी खुलकर आलोचना किया करते थे। कालांतर में वे टी.बी. के रोग से पीड़ित हो गए। बीमारी की अवस्था में उनके विचारों में भारी परिवर्तन आ गया। यद्यपि उनके मन में आशंका थी कि जीवन भर मैंने निंदा एवं आलोचना की है, इसलिए गुरुदेव दर्शन देने पधारेंगे या नहीं? फिर भी उन्होंने गुरुदेव को दर्शन देने के लिए निवेदन करवाया। गुरुदेव के दर्शन करते ही वे पश्चात्ताप से भर उठे और जी भरकर अपनी आत्मनिंदा की। उन्होंने गुरुदेव के समक्ष राजस्थानी भाषा का एक कवित्त सुनाया
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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