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________________ १०१ अध्यात्म के प्रयोक्ता पकड़ना और इतनी सहजता से अभिव्यक्ति दे देना साधारण बात नहीं है। पूज्य गुरुदेव ने क्रमशः कषायों को क्षीण करने का तीव्र प्रयत्न किया। कभी-कभी प्रवचन में अपने बचपन की स्थिति व्यक्त करते हुए वे कहते थे- 'मुझे बचपन में इतना तेज गुस्सा आता कि खाना भी छोड़ देता था। अनेक बार आवेश या जिद्द में खंभा पकड़कर खड़ा हो जाता। मैं किसी की नहीं सुनता। आखिर वदनांजी आकर मनाती तब मूड ठीक होता। लेकिन अब मेरा आवेश बहुत शांत हो गया है। पहले क्षण आवेश आता है, दूसरे क्षण समाप्त हो जाता है। नेता को कभी-कभी ऊपर से फुफकारना भी पड़ता है पर मैं भीतर से शांत रहने का प्रयत्न करता हूं क्योंकि मैं मानता हूं कि क्रोध व्यक्ति के विवेक चक्षु को बंद कर देता है। उत्तेजित व्यक्ति न शांति से सोच पाता है और न वाणी में विवेक रख पाता . 'कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव'- इस सुभाषित को पूज्य गुरुदेव ने साक्षात् जीया। यही कारण है कि उन्होंने धर्मक्रांति के रूप में उपासना एवं क्रियाकांड प्रधान धर्म को गौण करके आचरण प्रधान धर्म की प्रस्थापना की। धर्मक्रांति के रूप में गुरुदेव ने जन-चेतना को जगाते हुए कहा'कोई व्यक्ति, मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे जाये या नहीं, यदि उसका कषाय उपशांत है तो वह सबसे बड़ा धार्मिक है। रात-दिन आवेश में रहने वाला, क्रोध करने वाला व्यक्ति सबसे बड़ा कसाई है। चौबीस घंटे ध्यान की साधना करने वाला एक क्षण उत्तेजना करके सब कुछ खो देता है। इस प्रसंग में यह घटना-प्रसंग अनेक तथाकथित धार्मिकों की आंखें खोलने वाला है। अहमदाबाद प्रवास में एक बहिन गुरुदेव के उपपात में पहुंची। अपनी अन्तर्वेदना गुरु-चरणों में प्रकट करते हुए वह बोली- 'मेरी भीतरी तमन्ना है कि मैं जी भरकर धर्म करूं पर घर में कार्याधिक्य के कारण मुझे सामायिक आदि उपासना करने का समय नहीं मिलता।' गुरुदेव ने उसकी तड़प को पढ़ा और पूछा- 'बहिन! सामायिक या सत्संग नहीं कर सकती तो इस बात को दो क्षण के लिए छोड़ो, कोई दुःख की बात नहीं है। तुम यह बताओ कि गुस्सा करती हो या नहीं? बहिन ने सहजता से उत्तर दिया- 'गुरुदेव! मुझे गुस्सा बहुत कम आता है।' गुरुदेव ने पुनः प्रश्न
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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