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________________ अध्यात्म के प्रयोक्ता पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के उपर्युक्त संकल्प उनकी अकषाय भाव के प्रति तीव्र अनुरक्ति के द्योतक हैं। चित्त को विकृत एवं मलिन करने वाला सबसे बड़ा तत्त्व कषाय है। यह साधक जीवन के आंतरिक विकास का सबसे बड़ा पलिमंथु है। केशी ने गौतम से पूछा- 'जीवन के सबसे बड़े शत्रु कौन हैं'? गौतम ने केशी को समाहित करते हुए कहा'अपनी अविजित आत्मा, चार कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) तथा पांच इन्द्रियां- ये दस बड़े शत्रु हैं। इन पर विजय प्राप्त करने वाला सुख से विचरण करता है।' गुरुदेव तुलसी का अभिमत था कि कोई व्यक्ति उपवास कर सके या नहीं, तपस्या कर सके या नहीं, पर कषाय से हल्का हो जाए तो जीवन सौन्दर्य से भर सकता है।' साधक साधना-काल में आत्मा के इन चिरकालीन शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने का प्रयत्न करता रहता है क्योंकि कषायमुक्त व्यक्ति ही आंतरिक संपदा का दर्शन करके आत्मिक शक्ति प्राप्त कर सकता है। जब तक कषाय का शमन नहीं होता, व्यक्ति कभी क्रोध के अधीन होता है, कभी मान से पराजित होता है, कभी माया से आच्छादित होता है तो कभी लोभ से आक्रांत होता है। पूज्य गुरुदेव का मंतव्य था कि कषाय के दंश काले नाग के दंश की भांति पीड़क होते हैं। भीतर यदि कषाय प्रबल नहीं होगा तो बाहर पाप का सेवन असंभव हो जायेगा।' कषायों पर विजय प्राप्त करने के लिए निरन्तर आत्मयुद्ध आवश्यक है। कषायविजय के संदर्भ में उनका यह वक्तव्य पठनीय है- 'जब तक भावधारा न बदल जाए, संघर्ष जारी रखो। अन्यथा अहंकार का नाग पुनः फुफकार उठेगा, क्रोध की आग पुनः प्रज्वलित हो जाएगी। अहंकार, क्रोध आदि भावों को प्रबल होने का मौका देना सबसे बड़ी हार है, सबसे बड़ी बीमारी है और सबसे बड़ी उपाधि है।' 'पंचसूत्रम्' में कषाय-मुक्ति से प्रकट होने वाली शांति की चर्चा करते हुए पूज्य गुरुदेव कहते हैं कषायो मंदतामेति, क्रमेणानेन चारुणा। कषाये मंदतां प्राप्ते, शांतिरुज्जृम्भते वरा॥ साधु बनने के बाद भी यदि आवेश शांत नहीं होता है तो उसका श्रामण्य निष्फल हो जाता है। नियुक्तिकार ने इसी सत्य को बहुत सुन्दर भाषा में प्रस्तुत किया है
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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