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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ९८ इस प्रयोग में पूज्य गुरुदेव की हार्दिक इच्छा रात-दिन मौन रहकर पूर्ण एकान्तवास करने की थी। लेकिन जनता के अत्यधिक आग्रह से आधा घंटा प्रवचन तथा सुबह शाम लोगों के बीच बैठने का विकल्प रखा। ___ एकांतवास की सम्पन्नता पर उनके मुख से उद्गीर्ण अनुभवपूत वाणी से जाना जा सकता है कि उन्होंने उस साधना में कितने अलौकिक आनंद का अनुभव किया। अपनी डायरी के पृष्ठों में वे लिखते हैं- 'क्या आज सचमुच ही अनुष्ठान-सम्पन्नता का दिन है? लगता है जैसे कलपरसों ही यह क्रम प्रारम्भ किया था। जिा दिन अनुष्ठान प्रारम्भ किया था तब अनेक व्यक्तियों ने कहा- 'चार सप्ताह का क्रम बहुत लम्बा है। एक-दो सप्ताह ही चलाया जाए तो अच्छा है।' मैंने कहा- 'समय लम्बा है, फिर भी अनुष्ठान करना ही है।' अनुष्ठान प्रारम्भ किया और लगा कुछ जादू सा हो रहा है। इस काल में मैंने कुछ अपूर्वता का अनुभव किया। उस अपूर्वता को अभिव्यक्ति देने की क्षमता मेरे शब्दों में नहीं है।' आमेट चातुर्मास १९८५ में एकांतवास का नवाह्निक प्रयोग किया गया। इस एकांतवास में साधु-साध्वियों को प्रेक्षाध्यान का प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रयोग में प्रवचन के अतिरिक्त जन-सम्पर्क प्रायः बन्द था और चरणस्पर्श भी वर्जित रहा। नौ दिनों के दौरान एक दिन सामूहिक आयंबिल का प्रयोग भी किया गया। गुरुदेव तुलसी के एकांतवास के प्रयोग परमार्थ से जुड़े होने पर भी सामाजिक चेतना को जगाने वाले थे। इन प्रयोगों से उनकी निजता प्रभावी बनी और वैयक्तिक आध्यात्मिक साधना के प्रभाव से धर्मसंघ ही नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति अध्यात्म से अभिष्णात हुई। एकांतवास में अचिन्तन के क्षितिज से फूटते नवचिन्तन ने आत्ममंगल के साथ लोकमंगल की दिशा को भी प्रशस्त कर दिया। कषायमुक्ति की साधना * 'अकषायी बनना तो अभी कठिन है, असंभव नहीं है। मेरी हार्दिक इच्छा है कि निरंतर अकषाय की ओर बढ़ता चला जाऊं।' . * 'मेरे जीवन का वह स्वर्णिम प्रभात होगा, जिस दिन वासना पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त होगी और समता का साम्राज्य स्थापित होगा।'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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