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अध्यात्म के प्रयोक्ता
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१-२ एकांत चिंतन (परामर्श)। ३-४ सामूहिक वाचन। ४-६ पंचमी समिति, आहारनिवृत्ति, डायरी-लेखन। ६-८ सहप्रतिक्रमण, सहध्यान, सहप्रार्थना। ८-९ सहस्वाध्याय। ९-१० सहचिंतन, विचार-विनिमय। १० पूर्णविश्राम, योगनिद्रा।
एक दिन मध्याह्नकालीन गोष्ठी में एकांतवास की उपयोगिता पर चर्चा चली। उस गोष्ठी में एकांतवास का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कुछ बिन्दु बताए* व्यक्तिगत रुचि
स्वास्थ्य-लाभ
गृहस्थों से सम्पर्क में कमी * ध्यान-स्वाध्याय के विशेष प्रयोग * संघीय दृष्टि से विशेष चिंतन * व्यापक दृष्टि से चलने वाले कार्यक्रमों पर चिंतन।
एकांतवास की समाप्ति पर गुरुदेव ने अपने अनुभव बताते हुए कहा- 'एक दो बार के प्रयोग से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। फिर भी मैं यह कह सकता हूं कि एकांतवास में जिस आनंद की अनुभूति हुई, वह अनिर्वचनीय थी। उस सप्ताह की अवधि में हमने अनेक अनुभव प्राप्त किए हैं। स्वाध्याय, ध्यान, चिन्तन, मनन आदि के प्रयोगों से आत्मा में एक नवीन उत्साह का संचार हुआ है। यद्यपि इन प्रयोगों में हम पूर्ण दक्षता तो प्राप्त नहीं कर सके हैं फिर भी थोड़ा संतोष है कि हमें इन दिनों में कुछ सफलता प्राप्त हुई है। ध्यान के विषय में तो हमें अभी तक बहुत ही कम सफलता मिली है। सच तो यह है कि इस विषय में अभी तक हमारा प्रवेश-सा ही हुआ है। बहुधा मैं सोचता हूं कि लोग हमारे ध्यान के बारे में बड़ी-बड़ी कल्पनाएं करते होंगे। वे समझते होंगे कि हमें बहुत कुछ सिद्धियां मिल गई हैं। पर हमें अपनी स्थिति को हीनाधिक नहीं आंकना चाहिए। इस विषय में हमें अभी तक बहुत प्रयास करना होगा। मैं उस