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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ९४ स्वाध्याय और ध्यान में समय का उपयोग हुआ। दिन में छह घंटे और रात्रि में तीन घंटे के अनुपात से काम करने में अत्यधिक आनन्द का अनुभव हुआ। कई बार ऐसा लगा मानो नई शक्ति का अर्जन हो रहा है। वह वर्ष तेरापंथ की द्विशताब्दी का वर्ष था । उस वर्ष धर्मसंघ में एक नया मोड़ आए, यह अभिप्रेत था । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की शक्ति के संरक्षण और संवर्धन का संकल्प था । उस दृष्टि से ठोस और सार्थक चिन्तन चला ।' दूसरा एकांतवास का प्रयोग २८ सितम्बर से ४ अक्टूबर १९६१ तक बीदासर में किया गया। युगप्रधान विशेषण से अलंकृत होने पर स्वयं तथा संघ को उस अनुरूप प्रमाणित करने के लिए यह एकांतवास प्रारंभ किया गया। इसमें आठ साधुओं की सहभागिता रही। प्रवचन के मध्य घोषणा करते हुए गुरुदेव ने फरमाया- 'अन्यान्य क्रियाओं एवं साधनों के साथ-साथ अन्तर्यात्रा एवं साधना में गति लाने के उद्देश्य से स्वाध्याय, चिंतन, मनन और निदिध्यासन के लिए मैं तारीख २८ से एकांतवास लेने की बात सोच रहा हूं। इस प्रयोग में प्रातः कालीन प्रवचन और सामूहिक वंदना के अतिरिक्त मुझे एकांतवासी रहना है।' गुरुदेव ने यह एकांतवास थानमलजी मुणोत की कोठी में किया । यद्यपि इसे पूर्ण एकांतवास नहीं कहा जा सकता पर जन-संकुलता से बहुत बचाव किया गया। इस एकांतवास अतीत के सिंहावलोकन के साथ-साथ भावी योजनाओं पर चिंतन किया गया, जिससे विकास के नए अध्याय खुलें। बीदासर का यह एकांतवास स्वास्थ्य, साधना एवं संघीय विकास - इन तीनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण रहा। उस एकांतवास की दिनचर्या इस प्रकार रही प्रातः ४-५ एकांत ध्यान एवं स्वाध्याय । ५-७ सहस्वाध्याय, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन एवं सामूहिक वंदना । ७-९ पंचमी समिति, आसन-प्राणायाम, ध्यान । ९-१० प्रवचन ( प्रवचन - पंडाल में ) । १०- ११ ध्यान, कायोत्सर्ग । ११-१२ आहार, पत्रावलोकन, हल्का विश्राम | १२- १ मौलिक रचना ।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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