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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी . ९२ लोगों की ही नहीं होती, मनुष्य के विचार, इन्द्रियां, मन और शरीर भी संकुलता उत्पन्न करते हैं। वे एकाग्रता में बाधक होते हैं। इस संकुलता को तोड़े बिना एकांतवास भी समूहवास जैसा बन जाता है। यही कारण है कि हिसार में एकांतवास के प्रथम दिन अपनी डायरी में संकल्प को पुष्ट करते हुए उन्होंने लिखा- 'साधना-काल में मैं लोगों की भीड़ से ही नहीं, अपने मन, विचार और शरीर से भी मुक्त रहने का अभ्यास करूंगा। आज पहला दिन है और प्रयोग भी पहला है। तीन बार में आठ घंटे तक मैं बिल्कुल अकेला रहा। मौन और जप का प्रयोग किया। खाद्य-संयम किया। अन्य इंद्रियों का संयम किया। अपूर्व उल्लास का अनुभव हुआ। साधना स्वयं उल्लास है। साधनाकाल में अपने इष्ट की प्रत्यक्ष या परोक्ष सन्निधि और स्मृति उस उल्लास को और अधिक बढ़ा देती है। उल्लास के इन क्षणों में मैं अपने धर्मसंघ के भविष्य को उल्लासमय बनाने की मंगल कामनाओं से भरा हुआ हूं।' एकमासिक एकांतवास की सम्पन्नता पर अपने अनुभवों को बताते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा- 'जनसंकुलता से इतने लम्बे एकांत में रहने का यह पहला अवसर है। इससे पूर्व मैं लोगों की दृष्टि से अकेला होता तो एक मुनि भले ही वह नव दीक्षित ही क्यों न हो, मेरे पास अवश्य रहता। अब मैं घंटों तक एकदम अकेला रहता हूं, किन्तु कभी अकेलेपन को लेकर घुटन महसूस नहीं होती। इस प्रयोग में मुझे अपूर्व आनन्द की अनुभूति हुई है। इस अपूर्वता को विचित्र मानना हो तो माना जा सकता है। व्यस्तता या खालीपन को लेकर मुझे विचित्र जैसा कुछ नहीं लग रहा है।' पूज्य गुरुदेव को भीड़ में रहते हुए भी एकांत का अनुभव था अतः एकांतवास उनके लिए अधिक फलदायी एवं सार्थक बन सका। साधना के अभाव में दिन भर श्रद्धालु लोगों से घिरा रहने वाला व्यक्ति यदि अकेला हो जाए तो उसका मन लगना कठिन हो जाता है। व्यक्तिगत साधना को तेजस्वी, प्रभावी एवं वर्चस्वी बनाने हेतु तथा आत्मबल की वृद्धि के लिए उन्होंने समय-समय पर संघबद्ध साधना के साथ एकांतवास के प्रयोग किए। पूज्य गुरुदेव ने मुख्यतः राजनगर, बीदासर, लाडनूं, जयपुर, छापर, सरदारशहर आदि क्षेत्रों में एकांतवास के
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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