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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
कि समय-समय पर जन-जीवन को भी अनुप्रेक्षाओं से भावित करके उनकी वेदना, पीड़ा और दुःख को हल्का करते रहते थे। लगभग हर रोज कोई न कोई शोक संतप्त परिवार उनके चरणों में सम्बल लेने पहुंच ही जाता था। अकाल मौत से संतप्त परिवारों को मानसिक रूप से सम्बल देना सरल कार्य नहीं होता लेकिन पूज्य गुरुदेव उनको ऐसा पाथेय देते कि वे सब भारहीन एवं शक्ति-सम्पन्न होकर वापिस लौटते थे। गुरुदेव भावनात्मक रूप से अनुप्रेक्षा की ऐसी विचार - सरणि प्रस्तुत करते कि व्यक्ति संसार के वास्तविक स्वरूप को समझकर आत्मस्वरूप में रमण करने लगता । जीवन से निराश एवं उदास व्यक्ति में भी नए प्राणों का संचार करने की अद्भुत कला उनके पास थी। जब-जब गुरुदेव उपाध्याय विनयविजयजी द्वारा रचित शांतसुधारस भावना काव्य का संगान करते तो उनकी स्वरलहरी, हावभाव और तन्मयता देखते ही बनती थी । संस्कृत भाषा में निबद्ध शांतसुधारस में १२ भावनाओं का बहुत सरस एवं मार्मिक विवेचन हुआ है। पूज्य गुरुदेव ने स्वयं सोलह भावनाओं पर 'सुधारस' पुस्तक में लगभग ४० भावपूर्ण गीतों की रचना की । प्रत्येक गीत जीवन के विकारों एवं निषेधात्मक भावों को दूर करके भाव - परिष्कार की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गायक एवं श्रोता उन गीतों को गाते-गाते उन्हीं भावों में रमण करने लगते हैं।
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अनुप्रेक्षा चित्त की निर्मलता और रूपांतरण का हेतु है, इसी विश्वास से पूज्य गुरुदेव ने अनुप्रेक्षाओं का स्वयं प्रयोग किया और दूसरों को कराया ।
एकाग्रता एवं स्मृति का प्रयोग
साधना, शिक्षा, शोध, कला, संगीत और लेखन आदि सभी क्षेत्रों में सफलता हासिल करने के लिए एकाग्रता अपेक्षित है। मनुष्य और पशु के ज्ञान में अन्तर रहने का सबसे बड़ा कारण एकाग्रता की शक्ति का विकास है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं- 'मेरे विचार से तो शिक्षा का सार
मन की एकाग्रता प्राप्त करना है, तथ्यों का संकलन नहीं। यदि मुझे फिर से अपनी शिक्षा प्रारम्भ करनी हो और इसमें मेरा वश चले तो मैं तथ्यों का अध्ययन कदापि न करूं।'