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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी परमार्थ तक पहुंचा देता है। स्वार्थी व्यक्ति केवल अपने हित की बात सोचता है जबकि ध्याता समष्टि के सुख-दुःख से अपनी चेतना को जोड़ देता है। वह आत्मौपम्य के सोपान पर आरोहण कर सबके सुख-दुःख के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है। अपने आपको देखने वाले का मानवीय व्यवहार दूसरों के प्रति भी करुणापूर्ण और मृदु होगा। ध्यान के बारे में वे आत्मविश्वास के साथ कहते थे * 'मैं स्पष्ट रूप से घोषणा कर सकता हूं कि जो व्यक्ति ध्यान का प्रशिक्षण नहीं लेगा, ध्यान का अभ्यास नहीं करेगा, वह अधूरा रहेगा, अक्षम रहेगा और जीवन के किसी महत्त्वपूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति में सफल नहीं हो सकेगा।' *'ध्यान चित्त की उच्छंखलता पर एक अंकुश है। जो इसका प्रयोग करता है, वह कभी असामाजिक व्यवहार नहीं कर सकता। इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति, आस्था और प्रयोग की निरन्तरताये चार तत्त्व साधक को ध्यान की गहराई में ले जाते हैं। गुरुदेव ने अपनी ध्यान-साधना में इन चारों तत्त्वों पर विशेष बल दिया। वे प्रतिदिन ध्यान का नियमित प्रयोग करते थे। लोगों की अत्यधिक भीड़ होने पर भी उनके इस क्रम में कोई अंतर नहीं आता था। ध्यान-साधना के प्रति उनका दृढ़ विश्वास बोलता था कि जो शक्तिसंचय, तेज, ज्योति और आनंद का आविर्भात ध्यान से होता है, वह अन्य किसी भी अभ्यास-साधन से नहीं होता। इसीलिए मैं स्वयं बहुत बार चाहता हूं कि मैं मौन एवं ध्यान की विशिष्ट साधना प्रारंभ करूं । एकान्तवास में अपना अधिक समय लगाऊं। संघ का उत्तरदायित्व मेरे पर है, किन्तु फिर भी मैं अपना अधिकाधिक समय आसन, प्राणायाम, स्वाध्याय, ध्यान, जप और भावना-अनुप्रेक्षाओं में ही लगाना चाहता हूं।' ध्यान की नियमित साधना से चिंतन और व्यवहार की दूरी सदा के लिए समाप्त हो जाती है तथा वृत्तियों में रूपान्तरण घटित होता है। पूज्य गुरुदेव का चिंतन था- 'यदि ध्यान से जीवनचर्या न बदले, मान्यताएं और धारणाएं न बदलें, स्वभाव न बदले, रहन-सहन, आचरण और व्यवहार न बदले तो समझना चाहिए कि ध्यान की दिशा सही नहीं है। रूपान्तरण
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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