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दोहा-पाहुड हे मूढ ! सघळु विनश्वर छे, अनश्वर कंई नथी. जीव गयो, झुपडी (देह) न गई – ए दाखलो जो.
५२ देहमंदिरमा शक्ति साथे जे देव वसे छे, तेमां कोण शक्ति अने कोण शिव ते भेद हे जोगी ! तुं जलदी शोधी काढ.
५३ जे जीर्ण थतो नथी, मरतो नथी, जन्मतो नथी, जे परमात्मा अनंत, त्रिभुवनस्वामी, ज्ञानमय छे ते निश्चय शिव छे.
५४ शिव विना शक्ति कार्य करवा समर्थ नथी, शिव शक्ति विना. बन्नेने जाण्याथी मोहविलीन समग्र जगत जाणी लेवाय छे.
५५ ज्यां सुधी ते जुदो ज ज्ञानमय भाव तारा लक्षमां न आवे त्यां सुधी तारुं अज्ञानमय, हतभागी चित्त बापडं संकल्प-विकल्प करतुं रहे छे. ५६
नित्य, निरामय, ज्ञानमय, परमानंदस्वभाव परमात्माने जेणे जाणी लीधो छे तेने बीजो कोई भाव रहेतो नथी.
अमे एक जिनदेवने जाण्या, अनंत देवोने जाणी लीधा. त्यारे ते मोहमां मोहित थयेलो दूर दूर भटकतो रहे छे.
५८ जेना हृदयमां केवळज्ञानमय आत्मा वसे छे ते त्रणे लोकमां मुक्त छे. तेने पाप लागतुं नथी.
बंधनना कारणरूप कोई पण वस्तुने जे मुनि विचारतो नथी, बोलतो नथी के आचरतो नथी ते केवळज्ञानथी तेजस्वी शरीरवाळो परमात्मा देव छे.
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अंतरतम मन मेलुं होय तो बहारना तपथी शुं? चित्तमां कोई निरंजननी धारणा कर के जेथी मेलथी मुक्त थई शके.
विषय-कषायोमा जतां मनने निरंजनमां स्थिर करवू एटलुं ज मुक्तिनुं कारण छे, नहीं के बीजां कोई तंत्र-मंत्र.
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