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________________ ७४ दशवेकालिकसूत्रम्. वन्तस्म य पडियाईयणं गिहीणं ॥ ६ ॥ अहरगइ- वासोवसंपया ॥ ७ ॥ दुल्लभे खलु भो गिहीणं धम्मे गिहि-वास मज् वसन्ताणं ॥ ८ ॥ [अ० ११ आयङ्के से वहाय होइ ॥ ९ ॥ संकप्पे से वहाय होइ ॥ १० ॥ सोवक्के से गिहि वासे, निरुवक्केसे परियाए ॥ ११ ॥ बन्धे गिहि-वासे, मोक्वे परियार ॥ १२ ॥ सावज्जे गिहि-वासे, अणवज्जे परियार ॥ १३ ॥ बहु-साहारणा गिहीणं काम - भोगा ॥ १४ ॥ पत्तेयं पुण-पावं ॥ १५॥ अणिचे खलु भो मणुयाण जीविए कुसग्गजल -बिन्दु-चञ्चले ॥ १६ ॥ बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं ॥ १७ ॥ पावाणं च खलु भो कडा कम्माणं पुि दुचिखाणं दुष्पेंडिक्कन्ताणं वेयता मोक्खो, नत्थि अवेयईता, तवसा वा झोसइत्ता । अट्टारसमं पर्य भवइ ॥ १८ ॥ भवइ य एत्थ सिलोगो । जया य चयई धम्मं अणज्जो भोग- कारणा । ידי २ गिo not in sH. B पडियायणं. ३ s निरवज्जे. ४ B दुष्पडिक°, H and Avach. दुप्परक्क°. ५ B वेइत्ता and अवे..
SR No.002354
Book TitleDasveyaliya Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, Walther Schubrin
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year1932
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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