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________________ अ० ११] दशवैकालिकसूत्रम् से तत्थ मुछिए बाले आयई नावबुकई ॥१॥ जया ओहाविओ होइ इन्दो वा पडिओ छमं । सज्ज-धम्म-परिभद्रो स पछा परितप्पई ॥२॥ जया य वन्दिमो होइ पछा होइ अवन्दिमो। देवया व चुर्या द्राणा स पच्छा परितप्पई ॥३॥ जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो। राया व रज्ज-पभद्रो स पच्छा परितप्पई ॥४॥ जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो। सेट्टि व कब्बडे छूढो स पच्छा परितप्पई ॥५॥ जया य थेरओ होइ समइक्कन्न-जोवणो। मछो व गलि गिलिता स पच्छा परितप्पई ॥६॥ "(जया य कुकुडंबस्स कुततीहिं विहम्मई । हत्थी व बन्धणे बद्धो न पच्छा परितप्पई ॥) पुप्त-दार-परिकिणो मोह-संताण-संतओ। पड़ोसन्नी जहा नागो स पछा परितप्पई ॥७॥ अज्न याहं गणी होन्तो भावियप्पा बहुस्सओ। जइ हं रमन्तो परियाए सामणे जिण-देसिए“ ॥॥ • १B चुया. २s गलं. ३ B गलित्ता. ४ This sloka only in B and the ___Avach. (and interpolated in s j). ५H अद्य तावदहं (अज्ज ताह).
SR No.002354
Book TitleDasveyaliya Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, Walther Schubrin
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year1932
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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