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1. 15. 8.] आयाणियज्झयणे
से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च धम्मं च जे विन्दइ तत्थ तत्थ । आएजवके कुसले वियत्ते स अरिहइ भासिउं तं समाहि ॥ २७ ॥
ति बेमि ॥
गन्थज्झयणं चोदहमं आयाणियज्झयणे पण्णरहमे
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जमईअं पडुप्पन्नं आगमिस्सं च नायओ । सव्वं मन्नइ तं ताई देसणावरणन्तए ॥१॥ अन्तए वितिगिच्छाए से जागइ अणेलिसं । अणेलिसस्स अक्खाया न से होइ तहिं तहिं ॥ २ ॥ तहिं तहिं सुयक्खायं से य सच्चे सुआहिए । सया सच्चेण संपन्ने मेत्तिं भूएहि कप्पए ॥३॥ भूएहि न विरुज्झेजा एस धम्मे वुसीमओ । बुसि जगं परिनाय अस्सिं जीवियभावणा ॥ ४ ॥ भावणाजोगसुद्धप्पा जले नावा व आहिया । नावा व तीरसंपन्ना सव्वदुक्खा तिउट्टइ ॥ ६ ॥ तिउट्टई उ मेहावी जाणं लोगसि पावगं । तुट्टन्ति पावकम्माणि नवं कम्ममकुव्वओ ॥६॥ अकुचओ नवं नत्थि कम्मं नाम विजाणइ । विनाय से महावीरे जेण जाई न भिजई ॥ ७॥ न मिजई महावीरे जस्स नत्थि पुरेकडं । वाउ व्य जालमचेइ पिया लोगंसि इत्थियो ॥ ८ ॥