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सूयगडम्मि [1. 14. 15कालेण पुच्छे समियं पयासु आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं । तं सोयकारी य पुढो पवेसे संखा इमं केवलियं समाहिं ॥ १५ ॥ अस्मि सुठिच्चा तिविहेण तायी एएसु या सन्ति निरोहमाहु । ते एवमक्खन्ति तिलोगदंसी न भुजमेयन्ति पमायसंगं ॥ १६ ॥ निसम्म से भिक्खु समीहिय पडिभागवं होइ विसारए य । आयाणअही बोदाणमोणं उवेच्च सुद्धेण उवेइ मोक्वं ॥ १७ ॥ संखाइ धम्मं च वियागरन्ति बुद्धा हु ते अन्तकरा भवन्ति । ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए संसोधियं पण्हमुदाहरन्ति ॥ १८ ।। नो छायए नो वि य लूसएजा भाणं न सेवेज पगासणं च । न यावि पन्ने परिहास कुजा न यासियावाय वियागरेजा ॥ १९ ॥ भूयाभिसंकाइ दुगुञ्छमाणे न निव्वहे मन्तपएण गोयं । न किंचिमिच्छे मगुए पयासुं असाहुधम्माणि न संवएजा ॥ २० ॥ हासं पि नो संधइ पावधम्मे ओए तईयं फरुसं वियाणे । नो तुच्छए नो य विकंथइजा अगाइले या अकसाइ भिक्खू ॥२१॥ संकेज यासंकियभाव भिक्खू विभजवायं च वियागरेजा। भासादुयं धम्मसमुट्टिएहिं वियागरेजा समयासुपन्ने ॥ २२ ॥ अणुगच्छमाणे वितहं विजाणे तहा तहा साहु अकक्कतेणं । न कत्थई भास विहिंसइजा निरुद्धगं वा वि न दीहइजा ॥ २३ ॥ समालवेजा पडिपुण्णभासी निसाभिया समियाअनुदंसी । आणाइ सुद्धं वयणं भिउञ्जे अभिसंधए पावविवेग भिक्खू ॥ २४ ॥ अहावुझ्याई सुसिक्खएजा जइजया नाइवेलं वएज्जा । से दिटिमं दिहि न लुसएजा से जाणइ भासिउं तं समाहिं ॥२५॥ अल्सए नो पच्छन्नभासी नो सुत्तमत्थं च करेज ताई । सत्थारभत्ती अणुवीइ वायं सुयं च सम्म पडिवाययन्ति ॥ २६ ॥