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1. 3. 4. 3.] उवसग्गज्झयणे
एरिसा जा वई एसा अग्गवेणु व्व करिसिया । गिहिणो आभिहडं सेयं भुजिउं न उ भिक्खुणं ॥ १५ ॥ धम्मपन्नवणा जा सा सारम्भा न विसोहिया । न उ एयाहि दिट्ठीहिं पुवमासिं पगप्पियं ॥ १६ ॥ सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं अचयन्ता जवित्तए । तओ वायं निराकिच्चा ते भुजो वि पगाब्भया ॥ १७ ॥ रागदोसामिभूयप्पा मिच्छत्तेण अभिया । आउस्से सरणं जन्ति टंकणा इव पव्वयं ॥ १८ ॥ बहुगुणप्पगप्पाइं कुञ्जा अत्तसमाहिए । जेणन्ने न विरुज्झेजा तेण तं तं समायरे ॥ १९ ॥ . इमं च धम्ममायाय कासवेण पवेइयं । . . . कुजा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए ॥ २० ॥ संखाय पेसलं धम्मं दिहिमं परिनिव्वुडे । उवसग्गे नियामित्ता आ मोक्खाए परिव्वएजासि ॥ २१ ॥
. त्ति बेमि ॥ उवसग्गज्झयणे तइयुद्देसे
1. 3. 4. आहेसु महापुरिसा पुट्विं तत्ततवोधणा । उदएण सिद्धिमावन्ना तत्थ मन्दो विसीयइ ॥१॥ . अभुञ्जिया नमी विदेही रामगुत्ते य भुञ्जिया। बाहुए उदगं भोचा तहा नारायणे रिसी ॥ २ ॥ आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी। पारासरे दगं भोचा बीयाणि हरियाणि य ॥ ३ ॥ ..