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सूयगडम्मि
[1. 3. 3. 3एवं उ समणा एगे अबलं नचाण अप्पगं । अणागयं भयं दिस्स अवकप्पन्तिमं सुयं ॥ ३ ॥ को जाणइ विऊयायं इत्थीओ उदगाउ वा । चोइजन्ता पवक्खामो न नो अत्थि पकप्पियं ॥ ४ ॥ इच्चेव पडिलेहन्ति वलया पडिलेहिणो । वितिगिच्छसमावन्ना पन्थाणं च अकोविया ॥ ५ ॥ जे उ संगामकालम्मि नाया सूरपुरंगमा । नो ते पिडमुवेहिन्ति किं परं मरणं सिया ॥ ६ ॥ एवं समुट्टिए भिक्खू वोसिजा गारबन्धणं । आरम्भ तिरियं कट्टु अत्तत्ताए परिव्यए ॥ ७ ॥ तमेगे परिभासन्ति भिक्खुयं साहुजीविणं । जे एवं परिभासन्ति अन्तए ते समाहिए ॥ ८ ॥ संबद्धसमकप्पा उ अन्नमन्नेसु मुच्छिया। पिण्डवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य ॥ ९ ॥ एवं तुब्भे सरागत्था अन्नमन्त्रमणुव्बसा । नदृसप्पहसब्भावा संसारस्स अपारगा ॥ १० ॥ अह ते परिभासेजा भिक्खु मोक्खविसारए । एवं तुब्भे पभासन्ता दुपक्खं चेव सेवह ॥ ११ ॥ तुब्भे भुञ्जह पाएमु गिलाणो अभिहडम्मि य । तं च बीओदगं भोचा तमुदिस्सादि जं कडं ॥ १२ ॥ लित्ता तिव्वाभितावेणं उझिया असमाहिया । नाइकण्डूइयं सेयं अरुयस्तावरज्झई ॥१३॥ तत्तेण अणुसिहा ते अपडिन्नेण जाणया । न एस नियए मग्गे असमिक्खा वई किई ॥ १४ ॥