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1. 3. 3. 2.] उवसग्गज्झयणे
रायाणो रायमचा य माहणा अदु व खत्तिया । निमन्तयन्ति भोगेहिं भिक्खुयं साहुजीविणं ॥ १५ ॥ हत्थस्सरहजाणेहिं विहारगमणेहि य । भुञ्ज भोगे इमे सग्धे महरिसी पूजयामु तं ॥ १६॥ वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य । भुञ्जाहिमा भोगाई आउसो पूजयामु तं ॥ १७ ॥ जो तुमे नियमो चिण्णो भिक्खुभावम्मि सुव्वया । अगारमावसन्तस्स सव्यो संविजए तहा ॥ १८ ॥ चिरं दृइजमाणस्स दोसो दाणिं कुओ तव । इच्चेव णं निमन्तेन्ति नीवारेण व सूयरं ॥ १९ ॥ चोइया भिक्खचरियाए अचयन्ता जवित्तए । तत्थ मन्दा विसीयन्ति उजाणंसि व दुबला ॥ २० ॥ अचयन्ता व लुहेणे उवहाणेण तजिया । तत्थ मन्दा विसीयन्ति उजाणंसि जरग्गवा ॥ २१ ॥ एवं निमन्तणं लद्धं मुच्छिया गिद्ध इत्थिसु । अज्झोववन्ना कामेहिं नोइजन्ता गया गिहं ॥२२॥
ति बेमि ॥ उवसग्गज्झयणे बिइयुद्देसे
1. 3. 3. जहा संगामकालम्मि पिट्ठओ भीरु वेहइ । वलयं गहणं नूमं को जाणइ पराजयं ॥१॥ मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स मुहुत्तो होइ तारिसो। पराजिया वसप्पामो इइ भीरू उवेहई ॥ २॥