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1. 2. 2. 31] वेयालियज्झयणे . १५
सीओदग पडि दुगुंछिणो अपडिन्नस्स लवावसप्पिणो । सामाइयमाहु तस्स जं जो गिहिमत्तेऽसणं न भुञ्जई ॥ २० ॥ न य संखयमाहु जीवियं तह वि य बालजणो पगभई । बाले पावेहि मिजई इइ संखाय मुणी न मजई ॥ २१ ॥ छंदेण पले इमा पया बहुमाया मोहेण पावुडा । वियडेण पलन्ति माहणे सीउण्हं वयसा हियासए ॥ २२ ॥ कुजए अपराजिए जहा अक्खेहिं कुसलेहि दीवयं । कडमेव गहाय नो कलिं नो तीयं नो चेव दावरं ॥ २३ ॥ एवं लोगम्मि ताइणा बुइए जे धम्मे अणुत्तरे । तं गिह हियं ति उत्तम कडमिव सेस वहाय पण्डिए ॥ २४ ॥ उत्तर मणुयाण अहिया गामधम्म इइ मे अणुस्सुयं । जसी विरया समुडिया कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥ २५ ॥ जे एय चरन्ति आहियं नाएणं महया महेसिणा । ते उद्रिय ते समुट्टिया अन्नोन्नं सारेन्ति धम्मओ ॥ २६ ।। मा पेह पुरा पणामए अभिकंखे उवहिं धुणित्तए । ज दूमण तेहि नो नया ते जाणन्ति समाहिमाहियं ॥ २७ ॥ नो काहिए होज संजए पासणिए न य संपसारए । नचा धम्म अणुत्तरं कयकिरिए न यावि मामए ॥ २८ ॥ छन्नं च पसंस नो करे न य उक्कोस पगास माहणे। तेसिं सुविवेगमाहिए पणया जेहि सुजोसियं धुवं ॥ २९ ॥ अनिहे सहिए सुसंवुडे धम्मट्टी उवहाणवीरिए। विहरेज समाहिइंदिए अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ ॥ ३० ॥ न हि नूण पुरा अणुस्सुयं अदु वा तं तह नो समुट्टियं । मुणिणा सामाइ आहियं नाएणं जगसव्वदंसिणा ॥ ३१ ॥