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सूयगड
बहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं समयं समीहिया । जे मोगपयं उवडिए विरहं तत्थ अकासि पण्डिए ॥ ८ ॥
धम्मस्स य पारगे मुणी आरम्भस्स य अन्तर ठिए । सोयन्ति य णं ममाइणो नो लब्भन्ति नियं परिग्गहं ॥ ९ ॥ इहलो दुहावहं विऊपरलोगे य दुहं दुहावहं । विद्वंसणधम्ममेव तं इह विअं को गारमावसे ॥ १० ॥ महयं पलिगोव जाणिया जा विय वंदणपूयणा इहं । सुहुने सल्ले दुरुद्धरे विउमंता पयहि संथवं ॥ ११ ॥ एग चर ठाणमासणे सयणे एग समाहिए सिया । भिक्खु उवहाणवीरिए वइगु अज्झत्तसंवुडो ॥ १२ ॥ नो पीहे न यावपंगुणे दारं सुन्नघरस्स संजए । पुढे न उदाहरे वयं न समुच्छे नो संथरे तणं ॥ १३ ॥ जत्थत्थमिए अणाउले समविसमा मुणी हियासए । चरगा अदुवा विभेखा अदु वा तत्थ सरीसिवा सिया ॥ १४॥ तिरिया मणुया य दिव्वगा उवसग्गा तिविहा हियासिया । लोमादीयं न हारिसे सुन्नागारगओ महामुनी ।। १५ ।। नो अभिकखे जीवयं नो वि य पूयणपत्थणे सिया । अभत्थमुवन्ति भेरवा सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो ॥ १६ ॥ उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस्स विविकमासणं । सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाण भए न दंसए ॥ १७॥ उसिणोद्गतत्तभोइणो धम्मठियस्स मुणिस्स हीमतो |
असा राहिं असमाही उ तहागयस्स वि ॥ १८ ॥ अहिगरण कडस्स भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अ परिहायई बहू अहिगरणं न करेञ्ज पण्डिए । १९ ॥