________________
वेयालियज्झणे
अने अन्नेहि मुच्छिया मोहं जन्ति नरा असंबुडा | विसमं विसमेहि गाहिया ते पावेहि पुणो पगब्भिया ॥ २० ॥
1. 2. 2.7]
तम्हा दवि इक्ख पण्डिए पावाओ विर भिनिव्डे | पण वीरं महाविहिं सिद्धिपहं नेयायं धुवं ॥ २१ ॥ वेयालियमग्गमागओ मणवयसा कारण निव्वुडो | चिच्चा वित्तं च नायओ आरम्भं च सुसंवुडं चरे ॥
२२ ॥
तिमि ॥
वेयालियज्झयणे पढमुद्देसो
१३.
1. 2. 2.
तय संव जहाइ से रयं इइ संखाय मुणी न मजई । गोयन्नतरेण माहणे अहसेयकरी असि इंखिणी ॥ १ ॥ जो परिभवई परं जणं संसारे परिवत्तई महं । अदुखिया उपाविया इइ संखाय मुणी न मजई ॥ २ ॥
जे यावि अणायगे सिया जे वि य पेसगपेसगे सिया । जे मोणपयं उवट्टिए नो लज्जे समयं सया चरे ॥ ३॥ सम अन्यरम्भ संजमे समुद्धे सम परिव्वए ।
जे
आवा समाहि दविए कालमकासि पण्डिए ॥ ४ ॥ दूरं अणुपस्सिया मुणी तीयं धम्ममणागयं तहा । पुढे फरसेहि माह अहिष्णू समयम्मियइ ॥ ५ ॥ पनसमते सया जए समताधम्ममुदाहरे मुणी । हमे उसया अलूस नो कुज्झे नो माणि माहणे ॥ ६॥ बहुजणनमणम्मि संवुडो सव्वद्वेहि नरे अणिस्सिए । हरए व सया अणाविले धम्मं पादुरकासि कासवं ॥ ७॥