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सूयगडम
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अह पास विवेगमुgिe अवितिष् इह भासई धुवं । नाहिस आरं कओ पर वेहासे कम्मेहि किच्च ॥ ८ ॥ जइ विय नगिणे किसे चरे जइ वि य भुजिय मासमन्तसो । जे इह मायाहि मिजई आगन्ता गन्भाय णन्तसो ॥ ९॥
पुरिसोरम पावकम्मुगा पलियन्तं मणुयाग जीवियं । सन्ना इह काममुच्छिया मोहं जन्ति नरा असंबुडा || १० ॥
जययं विहराहि जोगवं अगुपागा पन्था दुरुत्तरा । असासमेव पकमे वीरेहिं सम्मं पवेइयं ॥ ११ ॥
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विरया वीरा समुट्ठिया कोहकायरिया पीसणा । पाणे न हणन्ति सव्वसो पावाओ विरयाभिनिव्बुडा ॥ १२ ॥ विता अहमेव लुप्प लुप्पन्ती लोगंसि पाणिणो । एवं सहिएहि पास अनि से पुट्ठे हियास || १३ ॥ 'घुणिया कुलियं व लेववं किस देहमणासणा इह । अविहिंसामेव पव्व अणुधम्मो मुणिणा पवेइयो | १४ ॥ सणी जह पंगुण्डिया विहुगिय धंसयई सियं रयं । एवं विवहावं कम्मं खवइ तवस्सि माहणे ।। १५ ।। उडियमणगारमेसणं समणं ठाणठियं तवस्सिणं । डहरा बुड्ढा य पत्थए अव सुस्सो न य तं लभेज नो ॥ १६ ॥ जड़ कालुणियाणि कासिया जड़ रोयन्ति य पुत्तकारणा । दवियं भिक्ख समुट्टियं नो लब्भन्ति न संठवित्तवे ॥ १७ ॥ जयि कामेहि लाविया जड़ ने जाहि ण बन्धिउं घरं । जड़ जीवि नाव नो लब्भन्ति न संठवित्तए ।॥ १८ ॥ सेहन्ति य णं ममाइणो माय पिया य सुया य भारिया । पोसाहि ण पासओ तुम लोग परं पि जहासि पोसणो ॥ १९ ॥