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1. 2. 1.7] वेयालियज्झयणे
एएहिं तिहि ठाणेहिं संजए सययं मुणी । उक्कसं जलणं नूमं मज्झत्थं च विगिश्चए ॥ १२ ॥ समिए उ सया साहू पञ्चसंवरसंवुडे । सिएहि आसिए भिक्खू आमोक्खाए परिव्वएजासि ॥ १३ ॥
त्ति बेमि ॥ समयज्झयणं पढम
वेयालियज्झयणे बिइए
1.2.1. संबुज्झह किं न बुज्झह संबोही खलु पेच्च दुल्लहा । नो हूवणमन्ति राइयो नो सुलभं पुमरावि जीवियं ॥१॥ डहरा बुड्डा य पासह गब्भत्था वि चयन्ति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे एवं आउखयम्मि तुई ॥ २ ॥ मायाहि पियाहि लुप्पई नो सुलहा सुगई य पेचओ।' एयाइ भयाइ पहिया आरम्भा विरमेज सुव्वए ॥३॥ जमिणं जगई पुढो जगा कम्मेहिं लुप्पन्ति पाणिणो । सयमेव कडेहि गाहई नो तस्स मुच्चेञ्जपुट्ठयं ॥ ४ ॥ देवा गन्धब्बरक्खसा असुरा भूमिचरा सरीसिवा । राया नरसेहिमाहणा ठाणा ते वि चयन्ति दुखिया ॥ ५ ॥ कामेहि य संथवेहि गिध्दा कम्मसहा कालेण जन्तवो । ताले जह बन्धणचुए एवं आयुखयम्मि तुट्टई ॥ ६॥
जे यावि बहुस्सुए सिया धम्मिय माहण भिक्खुए सिया । ... अभिनूमकडेहि मुच्छिए तिवं ते कम्मेहि किचई ॥७॥