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सूयगडम्मि [1. 1. 4: 1--
1. 1.4. एए जिया भो न सरणं बाला पण्डियमाणिणो । हिचा णं पुवसंजोयं सिया किच्चोवएसगा ॥१॥ तं च भिक्खू परिनाय वियं तेसु न मुच्छए ।' अणुक्कस्से अप्पलीणे मज्झेण मुणि जावए ॥ २ ॥ सपरिग्गहा य सारम्भा इहमेगेसिमाहयं । अपरिग्गहा अणारम्भा भिक्खू ताणं परिव्वए ॥ ३ ॥ कडेसु घासमेसेजा विऊ दत्तेसणं चरे । अगिद्धो विप्पमुक्को य ओमाणं परिवजए ॥ ४ ॥ लोगवायं निसामेजा इहमेगेसिमाहियं । विवरीयपन्नसंभूयं अन्नउत्तं तयाणुयं ॥ ५ ॥ अणन्ते निइए लोए सासए न विणस्सई । अन्तवं निइए लोए इइ धीरो तिपासई ॥६॥ अपरिमाणं वियाणाइ इहभेगेसिमाहियं । सव्वत्थ सपरिमाणं इइ धीरो तिपासई ॥ ७॥ जे केइ तसा पाणा चिट्ठन्ति अदु थावरा । परियाए अत्थि से अचू जेण ते तसथावरा ॥ ८॥ उरालं जगओ जोगं विवञ्जासं पलेन्ति य। सव्वे अकन्तदुक्खा य अओ सव्वे अहिंसिया ॥९॥ एवं खु नाणिणो सारं जं न हिंसइ किंचण। अहिंसासमयं चेव एयावन्तं वियाणिया ॥ १० ॥ बुसिए य विगयगेही आयाणं सम्म रक्खए । चरियासणसेजासु भत्तपाणे य अन्तसो ॥ ११ ॥