SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूयगडम्मि ... [1. 1. 2. 29मणसा जे पदुस्सन्ति चित्तं तेसिं न विजइ ।।... अणवजमतहं तेसिं न ते संवुडचारिणो ॥ २९ ॥ इच्चेयाहि य दिट्ठीहिं सायागारवनिस्सिया । सरणं ति मन्नमाणा सेवन्ती पावगं जणा ॥ ३० ॥ जहा अस्साविणिं नावं जाइअन्धो दुरूहिया ।। इच्छई पारमागन्तुं अन्तरा य विसीयई ॥ ३१ ॥ एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्टी अणारिया । संसारपारकंखी ते संसारं अणुपरियट्टन्ति ॥ ३२ ॥. ... . त्ति बेमि ॥ समयज्झयणे विइयुद्देसो 1. 1. 3. जं किंचि उ पूइकडं सड्ढीमागन्तुमीहियं । सहस्सन्तरियं भुजे दुपक्खं चेव सेवई ॥ १॥ तमेव अवियाणन्ता विसमंसि अकोविया । मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सभियागमे ॥ २ ॥ उदगस्स पहावेणं सुकं सिग्यं तमेन्ति उ । ढङ्केहि य कङ्केहि य आमिसत्थेहि ते दुही ॥ ३ ॥ एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो । मच्छा वेसालिया चेव घायमेस्सन्ति णन्तसो ॥ ४ ॥ इणमन्नं तु अन्नाणं इहमेगेसिमाहियं । देवउत्ते अयं लोए बम्भउत्ते इ आवरे ॥ ५॥ . ईसरेण कडे लोए पहाणाइ तहावरे । जीवाजीवसमाउत्ते सुहदुक्खसमनिए ॥ ६ ॥
SR No.002352
Book TitleSuyagadam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP L Vaidya
PublisherMotilal Sheth
Publication Year1928
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy