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समयज्झयणे
अन्नाणियाणं वीमंसा अन्नाणे न नियच्छइ । अप्पणो य परं नालं कुतो अन्नाणुसासिउं ॥ १७ ॥ वणे मूढे जहा जन्तू मूढे नेयाणुगामिए । दो वि एए अकोविया तिव्वं सोयं नियच्छई ॥ १८ ॥ अन्धो अन्धं पहं नेन्तो दूरमद्धाण गच्छइ । आवजे उप्पहं जन्तू अदु वा पन्थाणुगामिए ॥ १९ ॥ एवमेगे नियागट्टी धम्ममाराहगा वयं । अदु वा अहम्ममावले न ते सव्वजयं वए । २० ।। एवमेगे वियकाहिं नो अन्नं पजुवासिया । अप्पणो य वियकाहिं अयमञ्जू हि दुम्मई ॥२१॥ एवं तत्काइ साहेन्ता धम्माधम्मे अकोविया । दुक्खं ते नाइतुट्टेन्ति सउणी पञ्जरं जहा ॥ २२ ॥ सयं सयं पसंसन्ता गरहन्ता परं वयं । जे उ तत्थ विउस्मन्ति संसारं ते विउस्सिया ॥ २३॥ अहावरं पुरक्खाय किरियावाइदरिसणं । कम्मचिन्तापणहाणं संसारस्स पवड्डणं ॥ २४ ॥ जाणं काएगणाउट्टी अबुहो जं च हिंसइ । पुट्ठो संवेयइ परं अवियत्तं खु सावजं ॥ २५ ॥ सन्तिमे तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं । अभिकम्मा य पेसा य मणसा अणुजाणिया ॥ २६ ॥ एए उ तउ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं । एवं भावविसोहीए निव्वाणमभिगच्छई ॥ २७ ॥ पुत्तं पिया समारब्भ आहारेज असंजए । भुञ्जमाणो य मेहावी कम्मुणा नोवलिप्पई ॥ २८ ॥