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सुजसचन्द्रविजयजी महाराज ने इस कार्य में उन्हें पूर्ण सहयोग दिया, इसलिए मैं इन आचार्यदेवों एवं मुनिवरों का सादर अभिनन्दन करता हूँ।
प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में जिन-जिन लेखकों की कृतियों, पुस्तकों का सहयोग लिया गया है उन सभी का मैं आभारी हूँ।
चारित्रचूडामणि परमशान्तमूर्ति पूज्य गुरुदेव श्री जिनमणिसागरसूरिजी महाराज के अपूर्व वात्सल्य और अमोघ आशीर्वाद का ही फल है कि उनका सान्निध्य पाकर मैं साहित्य सेवी बन सका।
पूज्य आचार्य श्री विजयसोमचन्द्रसूरिजी महाराज के उपदेश से श्री जैन श्वेताम्बर रान्देर रोड जैन संघ, सूरत द्वारा यह प्रकाशन हो रहा है। अतः इस संस्था के कार्यकर्ता भी धन्यवाद के पात्र है।
___ अन्त में आयुष्मान मंजुल, पुत्रवधू नीलम, पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्धमान के स्नेह समर्पण और सहयोग के लिए ढेर सारे साधुवाद और अन्तरङ्ग आशीर्वाद।
मैं आशा करता हूँ कि देववाणी के रसिक विद्वजन भी इस अनूठे चित्रकाव्यात्मक प्रश्नोत्तरों का अध्ययन एवं रसास्वादन कर भविष्य में समीक्षात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत करेंगे जो कि अनुसंधित्सुओं के लिए मार्गदर्शक होगा।
१९-११-२००८, जयपुर
म. विनयसागर
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