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________________ (२) यह प्रति आचार्य श्री कैलाशसागरसूरि ज्ञानमन्दिर महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा की है । क्रमांक १३५५४ है । प्रति की साईज २९.५×१४.२ से.मी. है। पञ्चपाठ है। मध्य में मूल पाठ दिया गया है और ऊपर नीचे तथा दायें-बायें में टीका दी गई है। प्रति पत्र में मूल पाठ की पंक्ति १० एवं ११ है टीका की प्रतिपत्र पंक्ति १० है । प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ७० के लगभग है। लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है: इति - २ मूल समाप्तौ : श्रीमज्जैनवल्लभखरतरतरपक्षशृङ्गारहारसुविहितविद्वज्जनचक्रचूडामणि श्रीजिनवल्लभसूरिकृतिरियम् ॥ छ ॥ काव्ये मदीये चरितापशब्दे यो वेत्ति विद्वानपशब्दमत्रम्। तस्याहमाकल्यमनल्पबुद्धेः पादारविन्दं शिरसा नमामि॥ १॥ बृहस्पतिस्तिष्ठतु मन्दबुद्धिः पुरन्दरः किं कुरुते वराकः । मयि स्थिते वादिनि वादिसिंहे नैवाक्षरं वेत्ति महेश्वरोऽपि ॥ २ ॥ संवत् - १६५८ वर्षे चैत्र वदि ९ भोमे । श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्री जिनहर्षसूरीणां सन्ताने श्रीसाधुधर्मोपाध्यायशिष्याणुशिष्येण पं. उदयसागरमुनिना . लिखितम् ॥ छ ॥ टीकासमाप्तौ :- ग्रंथाग्रं - १५०० प्रति शुद्धतम है । प्रतिलिपिकार खरतरगच्छ की आद्यपक्षीय शाखा के जिनहर्षसूरि की परम्परा में उपाध्याय साधुधर्म के शिष्य उदयसागर है। स्वयं विद्वान् है । उन्होंने यह प्रति संवत् १६५८ में लिखी है अर्थात् टीका रचना के १८ वर्ष बाद लिखी गई है और शुद्ध है। (३) यह प्रति भी आचार्य श्री कैलाशसागरसूरि ज्ञानमन्दिर, महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा की है। क्रमांक नम्बर ९५२५ है । साईज १४x२९.७ से. मी. है। पत्र संख्या ३९ है, प्रति पत्र पंक्ति १५, प्रति पंक्ति अक्षर ४० है । लेखन संवत् १६७६ है। लेखक ने अपना नाम कनकसार लिखा है। ४६
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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