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पार्श्वनाथ लघुस्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, अप्रकाशित, हस्तलिखत प्रति- बालचन्द संग्रह राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, चित्तौड़ ६२६ में है । शान्तिजिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'गा. २१', अप्रकाशित, हस्तलिखित प्रति - आचार्यशाखा ज्ञान भं., बीकानेर में विद्यमान है । ज्ञानतिलकगणि के पश्चात् महोपाध्याय पुण्यसागरजी की परम्परा कहाँ तक चली ज्ञात नहीं है, शोध्य है । प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक की अन्य टीकाएं
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प्रस्तुत काव्य पर महोपाध्याय पुण्यसागर के अतिरिक्त अन्य लेखकों ने भी टीकाएं और अवचूरि आदि लिखी हैं वे निम्न है :
(१) टीका - श्री श्रीवल्लभोपाध्याय / ज्ञानविमलोपाध्याय, इसकी १८वीं सदी लिखित एक मात्र प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर क्रमाङ्क १९८६७ पर प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या १० है । टीका का मङ्गलाचरण इस प्रकार है:
श्री शान्तिस्तनुतां सुखानि सततं श्री: शाश्वतीश्चादरात् नव्यग्रन्थविधानतत्परपरप्रज्ञावतां धीमताम् ॥
सर्वप्राणिगणस्य चाद्भुतगुणैः पुंवृन्दमध्याग्रणी
मेघानामघदुःखहारि सुखकृ [ द्यः] पुष्करावर्त्तवत् ॥ १ ॥ जिनवल्लभसूरीन्द्रो गणे खरतरे प्रभुः ॥
प्रश्नोत्तरषष्टिशतग्रन्थं जग्रन्थ सत्पथः॥ २ ॥ तस्य टीकां करोत्येष श्री श्रीवल्लभवाचकः ॥ व्याकरणादि शास्त्रादि दर्श दर्शमनेकशः ॥ ३॥ (२) अवचूरि * सोमसुंदरसूरिशिष्य (३) अवचूरि * कमलमंदिरगणि (४) अवचूरि * मुक्तिचन्द्रगणि (५) अवचूरि * अज्ञात कर्तृक (६) टीका *
अज्ञात कर्तृक
१६वीं शता०
१७वीं शता०
१९वीं शता०
परवर्ती प्रश्नोत्तरकाव्य
जिनवल्लभसूरि कृत प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक काव्य की परवर्ती परम्परा में अनेक कवियों ने प्रश्नोत्तरी काव्य लिखे हैं । जिनमें से निम्न काव्य प्राप्त हैं :
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