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________________ ज्ञानतिलकगणि महोपाध्याय पुण्यसागरगणि के प्रशिष्य एवं उपाध्याय पद्मराजणि के शिष्य हैं। अच्छे विद्वान् थे। पुण्सागरजी रचित जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका का प्रथमादर्श १६४५ में जैसलमेर में इन्होंने लिखा था। इनकी संस्कृत में १ कृति प्राप्त हैं और भाषा में कई स्तवनादि प्राप्त हैं। जिनका वर्गीकरण निम्न है: १. गौतमकुलक टीका - यह २० गाथात्मक लघु कृति है। इस पर १६६० दीपावली के दिन टीका की रचना की है। इस टीका में ६९ कथाएं देकर इसको विस्तृत किया गया है। टीका की भाषा सरल और पठनीय है। इसका आद्यन्त इस प्रकार है:आदि- नत्वा श्रीदेवगुरून् मत्वा सत्त्वावबोधनं वक्ष्ये। प्राचीनगौतमऋषि-प्रणीतकुलकस्य वृत्तिमिमाम् ॥ १॥ अन्त- श्रीखरतरगणनायक-जिनहंसयतीश्वरा बभूवुः। श्रीपुण्यसागरमहो-पाध्यायास्तद्विनेयवराः॥१॥ विजयन्ते तच्छिष्या वाचकवरपद्मराजगणिप्रवराः। तेषामन्तेवासी विनिर्ममे ज्ञानतिलकगणी॥ २॥ गौतमकुलकसुवृत्तिं विलोक्य शास्त्राणि पूर्वटीकां च। वर्षे व्योमभवानी-सुतास्यलेश्याशशांकमिते ॥ ३॥ दीपोत्सवपर्वदिने विजयति जिनचन्द्रयुगवरे जगति। यदशुद्धं तच्छोध्यं प्रसद्य सद्योऽत्र धीमद्भिः॥४॥ एकोनसप्ततिकथा-समुदायसमन्विता सुगमबोधा। विज्ञजनवाच्यमाना वृत्तिरियं भुवि चिरं जीयात् ॥५॥ इसका प्रकाशन पण्डित हीरालाल हंसराज, जामनगर निवासी ने किया था। पुनः संशोधित संस्करण प्रकाशित होना चाहिए। २. नन्दिषेण फाग - इसकी राजस्थानी भाषा में रचना की गई है। अप्रकाशित है। इनकी स्तवनादि कई कृतियाँ प्राप्त है जो निम्न है:नेमिनाथ गीत, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-भर यौवनभरि नेमि... गा. १६', अप्रकाशित २. नेमिनाथ धमाल, गीत स्तवन, राजस्थानी, १७वीं, अप्रकाशित, हस्तलिखित प्रति-अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में विद्यमान है। ४१
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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