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स्थण्डिलके १०२४ भांगे, विधि, राजस्थानी, १७वीं, अप्रकाशित, खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार, जयपुर
संस्कृत भाषा के स्तोत्रों के समान ही पद्मरागणि का राजस्थानी भाषा पर भी पूर्ण अधिकार था। उनके द्वारा निर्मित तीन रास प्राप्त होते हैं जो निम्नलिखित हैं:
अभयकुमार चौपाई, चौपई, इसकी रचना युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के राज्य में संवत् १६५० में जैसलमेर में हुई है। इसकी भाषा राजस्थानी है। अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ-खरतरगच्छ ज्ञान भंडार, जयपुर, अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर, और राजस्थान प्राच्य विद्या
प्रतिष्ठान, जोधपुर २८९२६ आदि स्थानों में प्राप्त है। इसका आद्यन्त इस प्रकार है:आदि- अविचल सुखसंपति करण, प्रणमुं पास जिणंद।
शासननायक सेविइ, वर्द्धमान जिनचंद॥१॥ गोयम गणहर प्रणमी करि, समरूं सद्गुरु पाय। सरस वचन रस वरसति, सरसति करउ पसाय॥२॥ सुणतां चित अचरिज करइ, बहुविध बुधि विसाल।
मुनिवर अभयकुमारनउ, भणिसुं चरिय रसाल॥३॥ अन्त- इम श्री अभयकुमार प्रबन्ध, पभण्यउ सुजस कपुर सुगन्ध।
तसु चरित्र आवश्यक वली, श्रुत अनुसारइ मइ मनरली॥ ५०५ ॥ जे जिनवचन विरुद्ध कहाइ, मिच्छा दुक्कड़ मुज्झ थाय। संवत् सोलहसई पंचासि, जेसलमेरु नयरि उल्लासि ॥ ५०६॥ खरतरगछ नायक जिनहंस, तासु सीस गुणवंत वयंस। श्री पुण्यसागर पाठक सीस, पदमराज पभणइ सुजगीस ॥ ५०७॥ युगप्रधान जिनचंद मुणिंद, विजयमान निरुपम आणंद। भणइ गुणई जे चरित महंत, रिद्धि सिद्धि सुख ते पामंत ॥ ५०८॥ क्षुल्लककुमार प्रबन्ध, रास चौपई, इसकी रचना युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीजिनसिंहसूरि के आदेश से संवत् १६६७ में मुलतान में की गई है। इसकी भाषा राजस्थानी है। यह अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ-अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में विद्यमान है। इसका आद्यन्त
इस प्रकार है:आदि- पास जिणेसर पयकमल, प्रणमिय परम उल्लास।
सुखपूरण सुरतरु तणउ, जागइ महिमा जास॥१॥
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