________________
१९५ न करेमित्ति भणित्ता, तं चेव निसेवए पुणो पावं । पञ्चक्खमुसावाई, मायानियडीपसंगो य ॥ ५८७ ॥ लोएऽवि जो ससूगो, अलिभं सहसा न भासए किंचि । अह दिक्खिओऽवि अलियं, भासइ तो किंच दिक्खाए ? ।।५०८॥ महव्वयअणुव्वयाई, छंडेउ जो तवं चरइ अन्नं । सो अन्नाणी मूढो, नावाबु (छु ) हो मुणेयव्वो ॥ ५०९ ।। सुबहुं पासत्थजणं, नाऊणं जो न होइ मज्झत्थो । नय साहेइ सकज्ज, कागं च करेइ अप्पाणं ॥५१०।। परिचिंतिऊण निउणं, जइ नियमभरो न तीरए वोढुं । परचित्तरंजणेणं, न वेसमित्तेण साहारो ॥५११॥ निच्छयनयस्स चरणस्सुवघाए नाणदंसणवहोऽवि । ववहारस्स उ चरणे, हयम्मि भयणा उ सेसाणं ॥ ५१२ ॥ सुज्झइ जई सुचरणो, सुज्झइ सुस्सावओऽवि गुणकलिओ। ओसन्नचरणकरणो, सुज्झइ संविग्गपक्खरुई ॥५१३।। संविग्गपक्खियाणं, लक्खणमेयं, समासओ भणियं । ओसन्नचरणकरणाऽवि जेण कम्मं विसोहंति ॥ ५१४ ॥ सुद्ध सुसाहुधम्म, कहेइ निंदइ य निययमायारं । सुतवस्सियाण पुरओ, होइ य सव्वोमरायणीओ ॥ ५१५ ॥ वंदइ नय वंदावइ, किइकम्मं कुणइ कारवे नेय । अत्तट्ठा नवि दिक्खइ, देइ सुसाहूण बोहेउ ।।५१६।। ओसन्नो अत्तट्ठा, परमप्पाणं च हणइ दिक्खंतो। तं छुहइ दुग्गईए, अहिययरं बुड्डुइ सयं च ॥ ५१७ ।। जह सरणमुवगयाणं, जीवाण निकिंतए सिरे जो उ । एवं आयरिओऽविहु, उस्सुत्तं पन्नवंतो य ॥ ५१८ ॥ सावजजोगपरिवजणा उ सव्वुत्तमो जईधम्मो । बीओ सावगधम्मो, तइओ संविग्गपक्खपहो । ५१९ । सेसा मिच्छट्टिी, गिहिलिङ्गकुलिङ्गदव्वलिङ्गेहिं । जह तिण्णि य मुक्खपहा संसारपहा तहा तिण्णि ॥ ५२० ॥ संसारसागरमिणं, परिन्भमंतेहिं सबजीवेहिं । गहियाणि य मुक्काणि य अणंतसो दवलिङ्गाई ।। ५२१ ॥ अथणुरत्तो जो पुण, न मुयइ बहुसोऽवि पन्नविज्जंतो।
PEECHHOLLY