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सययं पमत्तसीलस्स, संजमो केरिसो होज्जा ? ॥ ४७६ ॥ चंदुव्व कालपक्खे, परिहाइ पए पए पमायपरो । तह उग्घरविघरनिरंगणो य णय इच्छियं लहइ ॥ ४७७ ॥ भीओव्विग्ग निलुक्को, पागडपच्छन्नदोससयकारी । अप्पच्चयं जणंतो, जणस्स धी जीवियं जियइ ॥४७८॥ न सहि दिवसा पक्खा, मासा वरिसावि संगणिज्जंति ।जे मूलउत्तरगुणा, अक्खलिया ते गणिज्जति ॥ ४७९ ॥ जो नवि दिणे दिणे संकलेइ के अन्ज अज्जिया मि गुणा ? । अगुणेसु अ नहु खलिओ, कह सो उ करिज अप्पहिलं ? ॥ ४८० ॥ इय गणियं इय तुलियं इय बहुआ दरिसियं नियमियं च । जइ तहवि न पडिबुज्झइ, किं कीरइ ? नूण भवियव्वं ॥४८१॥ किमगं तु पुणो जेणं, संजमसेढी सिढिलीकया होई । सो तं चित्र पडिवजह. दुक्खं पच्छा उ उज्जमई ॥ ४८२ ॥ जइ सव्वं उवलद्ध, जह अप्पा भाविओ उवसमेणं । कायं वायं च मणं, उप्पहेणं जह न देई ।। ४८३ ।। हत्थे पाए निखिवे, कायं चालिज्ज तंपि कज्जेणं । कुम्मो व्व सए अंगे, अंगोवंगाई गोविज्जा ॥ ४८४ ॥ विकई विणोयभासं अंतरभासं अवकभासं च । जं जस्स अणिट्ठिमपुच्छिओ य भासं न भासिज्जा ॥ ४८५ ॥ अणवट्ठियं मणो जस्स, झायइ बहुयाइं अट्टमट्टाई । तं चिंतिथं च न लहइ, संचिणइ भ पावकम्माई ॥ ४८६ ॥ जह जह सव्वुवलद्ध, जह जह सुचिरं तवो वणे वुच्छं । तह तह कम्मभरगुरू, संजमनिब्वाहिरो जाओ ॥ ४८७ ॥ विजप्पो जह जह ओसहाई पिज्जेइ वायहरणाई । तह तह से अहिययरं, वारणाऊरिअं पुट्ट ॥ ४८८ ॥ दडढजउमकज्जकर, भिन्नं संखं न होइ पुण करणं । लोहं च तंबविद्ध न एइ परिकम्मणं किंचि ॥ ४८९ ॥ को दाही उवएसं, चरणालसयाण दुविअड्ढाणं ?। इंदस्स देवलोगो, न कहिजइ जाणमाणस्स ॥४९०॥ दो चेव जिणवरेहि, जाइजरामरणविप्पमुक्केहिं ।