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भोगेहिं । संसारत्था जीवा, अरइविणोअं करतेवं ॥ ४६१ ।। आरंभपायनिरया, लोइअरिसिणो तहा कुलिंगी अ । दुहओ चुक्का नवरं, जीवंति दरिद्दजियलोए ॥ ४६२ ॥ सव्वो न हिंसीयत्वो, जह महिपालो तहा उदयपालो । नय अभयदाणवइणा, जणोवमाणेण होयव्वं ॥ ४६३ ॥ पाविजइ इह वसणं, जणेण तं छगलओ असत्तुति । न य कोइ सोणियबलिं, करेइ वग्घेण देवाणं ॥ ४६४ ॥ वच्चइ खणेण जीवो, पित्तानिलधाउसिंभखोभेहिं । उज्जमह मा विसीअह, तरतमजोगो इमो दुलहो ॥ ४६५ ॥ पंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं आरिए जणे सुकुलं । साहुसमागम सुणणा, सदहणाऽरोग पव्वज्जा ॥ ४६६ ॥ आउ संविल्लंतो, सिढिलंतो बंधणाइँ सव्वाइं । देहट्ठिअं मुयंतो, झायइ कलुणं बहुं जीवो ॥ ४६७ ॥ इक्कऽपि नस्थि जं सुटु सुचरियं जह इमं बलं मज्झ। को नाम दढक्कारो, मरणंते मंदपुण्णस्स ? ॥ ४६८ ।। युग्मम् ॥ मूलविसअहिविसूईपाणीसत्थग्गिसंभमेहिं च । देहतरसंकमणं, करेइ जीवो मुहुत्तेण ॥ ४६९ ॥ कत्तो चिंता सुचरियतवस्स गुणसुट्ठियस्स साहुस्स ? । सोगइगमपडिहत्थो, जो अच्छइ नियमभरियभरो ॥ ४७० ॥ साहंति अ फुडयिअडं, मासाहससउणसरिसया जीवा । न य कम्मभारगरुयत्तणेण तं आयरंति तहा ॥ ४७१ ॥ वग्धमुहम्मि अहिगओ, मंसं दंतंतराउ कड्ढेइ । मा साहसंति जंपइ, करेइ न य तं जहाभणियं ॥ ४७२ ॥ परिअट्टिऊण गंथत्थवित्थरं निहसिऊण परमत्थं । तं तह करेह जह तं, न होइ सव्वंपि नडपढियं ॥ ४७३ ॥ पढइ नडो वेरग्गं, निव्विज्जिज्जा य बहुजणो जेण । पढिऊण तं तह सढो, जालेण जलं समोअरइ ॥ ४७४ ॥ कह कह करेमि कह मा करेमि कह कह कयं बहुकयं मे । जो हिययसंपसारं, करेइ सो अइकरेइ हियं ॥४७५ ॥ सिढिलो अणायरकओ, अवसवसकओ तहा कयावकओ।