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( ६ ) श्री आवश्यक सूत्र के पाँचवें कायोत्सर्ग नामक अध्ययन में "अरिहंतचेइयाणं" शब्द का अर्थ 'जिनप्रतिमा' किया है । यथा - " अर्हन्तः तीर्थंकराः, तेषां चैत्यानि प्रतिमालक्षणानि ।
(७) श्री भगवती सूत्र में असुरकुमारदेव सौधर्मदेवलोक में जाते हैं, तब तक तीन का शरण करते हैं । एक अरिहंत भगवन्त का दूसरा चैत्य यानी जिनप्रतिमा का और तीसरा साधु का । यथा
" नन्नत्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा भावी अप्पणी अणगारस्स वारिणस्साव उड़ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ।"
इत्यादि अनेक पाठ अपने आगमशास्त्रों में चैत्य शब्द के अर्थ के बारे में मिलते हैं । इधर तो मात्र दिग्दर्शन ही कराया है ।
(२३) जिनमूत्ति - जिन प्रतिमा कैसी है और क्या करती - कराती है ?
देवाधिदेव श्रीजिनेश्वर भगवान की विधि-विधानपूर्वक अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठा की हुई भव्य मूर्ति प्रतिमा के दर्शन-पूजनादि करते समय भव्य जीवों भव्यात्माओं को
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ७५